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[ २८३ ] ली। दीशा पर्याय का पालन कर सर्वार्थसिद्धि नामक वैमानिक देवलोक में उत्पन्न हुए।
देखो ! संगम ने कितने बड़े फल को प्राप्त किया। सुपात्र दान के प्रभाव से संगम से शालीभद्र बना।
(२६) कोशा गणिका के यहाँ बारह वर्ष पर्यत स्थूलिभद्र ने सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया । दर्शनमोहनीय कर्म तपा चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम होने से मिथ्यात्व से निवृत्त हुए, सम्यक्त्व को प्राप्त किया । साधु-पर्याय भी ग्रहण की। चतुर्दश पूर्वो का सूत्र रूप ज्ञान भी सिखा तथा दस पूर्व तक सूत्र व अर्थ रूप ज्ञान सिखा । समाधि अवस्था में काल कर देवलोक में उत्पन्न हुए।
इस प्रकार अनेक मिथ्यात्वी जीवों ने सद् क्रिया से आत्मविकास किया है।
श्रुतज्ञानको भावना से शान का विकास होता है अत: मिथ्यात्वी श्रुत का अभ्यास करे। श्रुत का अभ्यासी मिथ्यात्वी अनुक्रम से सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है । यतिवृषभाचार्य ने कहा है -
सुदणाणभावणाए जाणंमत्तऽकिरणउज्जोओ। आदचंदुज्जलं, चरित्त चित्त हवेदि भव्वाणं ॥
-तिलोयपण्यत्ती महाधिकार १ । गा ५. अर्थात् श्रुतज्ञान की भावना से भव्यारमा जान रूपो सूर्य की किरणों से उद्योत रूप-प्रकाशमान होता है और उनका चरित्र और चित्त चन्द्रमा के समान उज्ज्वल होता है। श्रुत से मिथ्यात्वी-मिथ्यात्व से निवृत्त होकर सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है।
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