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________________ [ २८१ ] एकाग्रचित्त से सुना, फलस्वरूप मरण प्राप्त कर दोनों बलद - ( कंबल - संबल नामक ) नागकुमार देवों में उत्पन्न हुए । ' ( बलावि ) जाहे सव्वहा नेच्छति ताहे वो सावतो भत्तं पच्चक्खाइ नमोक्कारं च देइ, ते कालगया नागकुमारेसु उववन्ना । — आव० निगा ४६८ । मलय टोका में उद्धत जब दोनों बलदों को कुछ खाने की इच्छा न हुई तब मथुरा वासी जिनदास श्रावक ने अवसर देख कर उन्हें आजीवन अनशन पच्चखाया, नमस्कार मंत्र सुनाया । फलस्वरूप वे मरण प्राप्तकर नागकुमार देवों में उत्पन्न हुए । (२३) दृढ प्रहारी जैसे महामिध्यात्वी सद्संगति से मिध्यात्व से निवृत्त होकर आत्मोद्वार किया । वह ब्राह्मण, स्त्री, गर्भहत्या ( बालहत्या ) और गाय की हत्या करने वाला था । लोक मान्यता है कि बालक, स्त्री, ब्राह्मण और गाय इनमें से जो एक को भी हत्या करता है; वह अवश्य ही नरक का अधिकारी बनता है । अंतत: शुद्ध भावना का चिंतन करते हुए उसे साधु का संयोग मिला । साधु के उपदेश से प्रभावित होकर मिध्यात्व से निवृत्त होकर सम्यक्त्व ग्रहण किया | लक्ष्चात् चारित्र ग्रहण कर केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पद प्राप्त किया | आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है ब्रह्मस्त्री भ्रण - गो-घात हारि प्रभृतेर्योगो ܬ - Jain Education International 2010_03 पातकान्नरका तिथे : । इस्तावलम्बनम् ॥ योगशास्त्र, प्रथम प्रकाश, श्लोक १२ (१) महुराए जिणदासो आभीर विवाह गोण उववासो । भंडीरमण मित्त बच्चे भत्त े नागोहि आगमणं ॥ - आव० निगा ४७० भावं ज्ञात्वा तयोर्भक्तप्रत्याख्यानमदत्त सः । तावपि प्रतिपेदाते साभिलाषौ समाहितौ ॥ ३३८ ॥ X X X वन्तौ तौ नमस्कारान् भावयन्तौ भवस्थितिम् । समाधिना मृतौ नागकुमारेषु बभूवतुः ||३४०|| — त्रिषष्टि श्लाघा पुरुष चरित्र पवं १० । सर्ग ३ | श्लो ३३८, ३४० ३६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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