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________________ [ १६६ ] मुगापुत्र को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। संज्ञो जान (बालिस्मरणशान )मह ज्ञान संज्ञो जीवों को ही होता है, अतः इसे संशी ज्ञान कहते हैं; उत्पन्न होने है, पूर्व जन्म का स्मरण हुआ। उसे ज्ञात हुआ कि मैं देवलोक से च्यवकर मनुष्य भव में आया हूँ । जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त होने पर, महाऋद्धि वाले मृगा पुत्र, अपने पूर्व जन्म और उसमें पाले हुए संयम को याद करने लगे। - यद्यपि उपयुक्त पाठ में केवल शुभ अध्यवसाय शब्द का व्यवहार है परन्तु शुभलेश्या, शुभ परिणाम आदि का व्यवहार नहीं है। अस्तु मृगापुत्र को जब जांतिस्मरणे ज्ञान उत्पन्न शुआ तब शुम अध्यवसाय के साथ शुभ परिणाम और पिशुद्ध लेश्या भी होनी चाहिए तथा सदावरणीय कर्म (नोइन्द्रिय मतिज्ञानावरणीय कर्म) का क्षयोपशम भी अवश्य था। जातिस्मरण तथा विभंग अज्ञानको उत्पति के समयमें मिथ्यात्वी के भी लेश्या की उत्तरोतर विशुद्धि, शुभ परिणाम, शुभ मध्यवसाय तथा तदावरणीय कर्म का क्षयोपशम होना आवश्यक है। सम्यक्त्वी जीव के भी जातिस्मरणादि शान की उत्पत्ति के समय में शुभ लेश्यादि होते हैं। जिस प्रकार मिष्यात्वी मिथ्यात्व से निवृत्त होकर सम्यक्त्व को प्राप्त करते हैं उस समय लेश्या शभ होती है उसी प्रकार जातिस्मरण ज्ञान तथा विभंग ज्ञान अवधिज्ञान मनःपर्यव ज्ञान तथा केवलज्ञान को उत्पत्ति के समय में मिथ्यात्वो या सम्यक्त्वी के शुभ लेश्या होती है क्योंकि सिद्धान्त का यह नियम है कि अशुभ लेख्या में चाहे सम्यक्त्वी हो चाहे मिथ्यात्वी हो-जातिस्मरण आदि ज्ञान उत्पन्न नहीं होते हैं। अस्तु निरवद्य क्रिया (शुभ अध्यवसाय, शुभ परिणाम, शुभ लेश्या) के द्वारा ही मिष्यादृष्टि सद्गति को प्राप्त होता है क्योंकि निरवद्य क्रिया के द्वारा ही पुण्य का बन्ध होता है। प्रशमरति प्रकरण में कहा गया है कि शु भयोग की प्रवृत्ति के बिना पुण्य का बन्ध नहीं होता है।' (१) योगः शुद्धः पुण्याः सवस्नु पापस्य तद्विपर्यासः --प्रशमरति प्रकरण पृष्ठ २२० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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