________________
प्रकाशकीय
यह आपको मालूम ही होगा कि स्वर्गीय श्री मोहनलालजी बांठिया के जैनागम एवं वाङमय के तलस्पर्शी गम्भीर अध्ययन द्वारा प्रस्तुप्त कोश परिकल्पना को क्रियान्वित करने तथा उनके सत्कर्म और अध्यवसाय के प्रति समुचित सम्मान प्रकट करने की भावनावश जैन दर्शन समिति की संस्थापना महावीर जयंती १९६९ के दिन की गई थी। स्वर्गीय श्री मोहनलालजी बाँठिया ने श्रीचन्दजी चोरडिया के सहयोग से क्रिया कोश तैयार किया था, जिसको समिति ने सन १९६९ में छपाया था। समिति के गठन होने के पूर्व स्वर्गीय श्री बांठियाजी ने श्रीचन्दजी चोरडिया के सहयोग से लेश्याकोश को भी तैयार किया था--जो सन् १६६६ में स्वयं के खर्चे से ही प्रकाशित किया था।
'लेषयाकोश व क्रियाकोश' विद्वर्ग द्वारा जितना समाहत हुआ है तथा जैन दर्शन और वाङमय के अध्ययन के लिये जिस रूप में इसको अपरिहार्य बताया गया है। देश-विदेश में इसकी मुक्त कंठ से प्रशंसा हुई है। भगवान महावीर जीवन कोश' का संकलन प्रायः बांठियाजी के रहते हुए ही हो गया था। इसके दो खण्ड होंगे। उनके सहयोगी श्रीचन्दजी चोरडिया-इन दोनों खण्डों को तैयार कर रहे हैं; जो शोघ्र हो तैयार हो जायेंगे।
जैन दर्शन जीवन का शुद्धि का दर्शन है। रागद्वोष आदि बाह्यशत्र, जो आत्मा को पराभूत करने के लिये दिन-रात कमर कैसे अड़े रहते हैं, से जूझने के लिये यह एक अमोघ अस्त्र है। जीवन शुद्धि के पथ पर आगे बढ़ने की आकांक्षा रखने वाले पथिकों के लिये यह एक दिव्य पाथेय हैं। यही कारण है, जैन दर्शन बानने का अर्थ है आरममार्जन के विधिक्रम को जानना, आत्मचर्या की यथार्थ पद्धति को समझना।
भगवान महावीर की साधना के प्रति मानव समुदाय श्रद्धावनत है उन्होंने समता के जिस सिद्धांत का निरुपण किया था, उसकी सीमा मानव जगत् तक
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org