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पुद्गल द्रव्य और पुद्गल की सूक्ष्म स्थूल अवस्थायें
७३ आहारक वर्गणाका तृतीय कार्य आहारक शरीरका निर्माण करना है । यह शरीर वैक्रियिक शरीरकी अपेक्षा भी अधिक सूक्ष्म है। यह शरीर ज्ञानी, वीतरागी तथा तपस्वी योगियोंको ही प्राप्त होता है। इसकी जाति एक विशिष्ट प्रकारकी होती है। इसमें औदारिक शरीरकी भाँति रक्त आदि सप्त धातुएं और अस्थि चर्म आदि भी नहीं होते । यह शरीर श्वेतवर्ण वाले, एक हस्तप्रमाण पुतलेके रूपमें मुनिके मस्तकसे प्रगट होता है, ऐसी जैनोंकी मान्यता है। अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण यह किसी पदार्थका व्याघात नहीं करता और न ही अन्य से व्याघातित होता है। वज्रके समान कठोर पटलोंमें से भी पार होकर, यह कई लाख योजन तक बिना रूकावटके गमन करने में समर्थ होता है । इस प्रकारके गमन को “अप्रतिहत गमन” कहा जाता है। इस प्रकार आहारक वर्गणा एक ही जातिकी होते हुए भी उत्तरोत्तर सूक्ष्म तीन प्रकारके शरीरोंका निर्माण करती है, जो एक दूसरेसे विलक्षण तथा विजातीय होते हैं। ख. तेजस वर्गणा
दूसरी वर्गणाका नाम तैजस है । इसके द्वारा तैजस शरीरका निर्माण होता है, जो औदारिक, वैक्रियिक तथा आहारक इन तीनोंकी अपेक्षा भी अधिक सूक्ष्म है। सूक्ष्म होनेके कारण यह शरीर इन्द्रिय गोचर नहीं होता, परन्तु औदारिक नामक स्थूल शरीरमें यह तेज या प्रभा उत्पन्न करता है। तैजस शब्द लोकमें अग्नि नामक महाभूत के लिए प्रयोग होता है। अग्निका ही अन्यतम रूप आणविक विस्फोट है, जिसके द्वारा पर्वतोंको भी विदारण किया जा सकता है। तेजस शरीरमें भी यह प्रलंयकारी शक्ति विद्यमान होती है। शास्त्रों में तैजस शरीरको दो प्रकारका कहा गया है - अनि:सरणात्मक और नि:सरणात्मक |अनि:सरणात्मक तैजस शरीर, औदारिक शरीरमें तेज, कान्ति अथवा दीप्ति उत्पन्न करता है, जठराग्निको उत्तेजित करता है और भुक्त अन्नका पाचन करता है। १. तत: सूक्ष्मं आहारक - सर्वार्थसिद्धि, पृ० १९२ २. उत्तम अंगम्हि हवे धादुविहीणंसुहं असंहणणम् ।
सुहसंठाणं धवलं हत्थ परमाणं पसत्थुदयम् । गोम्मटसार जीव काण्ड/गाथा २३७ ३. नयाहारक शरीरेणान्यस्य व्याघातो, नाप्यन्येनाहारकस्य, राजवार्तिक पृ० १५२ ४. अणेयजोजणलक्खगमणक्खमं अपड़िहयगमणम् - षट्खण्डागम धवला टीका पुस्तक ४,
खण्ड १, पृ०२८ ५. तत: (आहारकादपि) सूक्ष्म तैजसम् । सर्वार्थसिद्धि, पृ० १९२ ६. तेयप्पहगुणजुतमिदि तैजइयम । षटखण्डागम १४, सूत्र २४०, पृ० ३२७ . ७. जंतमणिस्सरणप्पयं....वही, पृ० ३२८
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