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________________ ३२ " कालो वर्तनमिति वा परिणमनं वस्तुन: स्वभावेन" । " काल की अन्तिम इकाईको जैन दर्शनकारोंने "समय" कहा है। एक परमाणु जितने समय में निकटवर्ती दूसरे प्रदेश का अतिक्रमण करता है, उतने समय को ही यहाँ समय कहा जाता है।' यही समय द्रव्यका स्वकाल कहा जाता है। घडी, घण्टा, दिन आदि सभी कालवाची अवस्थायें समय का ही स्थूल रूप हैं । बाल, वृद्ध, प्राचीन, नवीन, जन्म, मृत्यु आदि जितनी भी वस्तुकी पर्याय हैं, वे सब कालगत पर्यायों को व्यक्त करती हैं । जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त - एक अध्ययन भाव शब्द वस्तुके गुण स्वभाव अथवा परिणामका वाचक है । पूर्वापर कोटि से व्यतिरिक्त, वर्तमान पर्यायसे उपलक्षित द्रव्यका परिणाम ही वस्तुका स्वभाव कहा ता है, जो वस्तुका नित्य शुद्ध अंश होता है । इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप स्वचतुष्ट्यमें पुद्गल द्रव्य की अन्तिम इकाई परमाणु है, क्षेत्रकी अन्तिम इकाई प्रदेश है, कालकी अन्तिम इकाई "समय" है और भावकी अन्तिम इकाई अविभागी प्रतिच्छेद है। ये इकाईयाँ सभी द्रव्योंमें पृथक्-पृथक् होती हैं और इतनी सूक्ष्म होती हैं कि लोक में दृष्टिगोचर ग्राम, मिलीमीटर, सैकिण्ड और डिग्री या कैलोरी भी इन इकाईयों के स्थूल रूप ही होते हैं । १४. निष्कर्ष वस्तु स्वभावके द्रव्य, गुण, पर्याय, स्वचतुष्ट्य आदि विभिन्न विषयों के विश्लेषणात्मक परिचयसे यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि जैन मान्य वस्तु षड् द्रव्योंका समुदाय रूप है और प्रत्येक द्रव्य अपने विभिन्न गुणों और परिवर्तनों में से निकलते हुए भी अपनी स्थिरताको नहीं छोड़ते । प्रत्येक द्रव्यकी सत्ता त्रिकाल स्थायी है । गुण द्रव्यके आश्रित रहते हैं, परन्तु गुणोंको द्रव्योंसे पृथक् नहीं किया जा सकता, किसी वस्तुकी सत्ता उसके गुणोंके द्वारा ही प्रगट होती है और गुण वस्तुमें अग्निकी उष्णताके समान ओत-प्रोत होते हैं। इस प्रकार जैनोंके द्रव्य और गुणोंकी एकतासे न्यायवैशेषिकके द्रव्य और गुणोंकी विभिन्नताका खण्डन हो जाता है । १. पंचाध्यायी, पूर्वार्द्ध, श्लोक २७४ २. नेमिचन्द्राचार्य, गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा ५७३ ३. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ४, पृ० ५०६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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