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मणीराम (नामक) दामाद ने मित्रों को कहा--- अब यहां रहना ठीक नहीं है । निज घर में इसकी अपेक्षा स्वादिष्ट भोजन है, इसलिए यहां से गमन ही उत्तम (है)। ससुर को प्रभात में कहकर मैं जाऊंगा। उन्होंने (मित्रों ने) कहा-हे मित्र ! बिना मूल्य भोजन कहां है (इसलिए) यह कठोर की हई रोटी स्वादवाली गिनकर खाई जानी चाहिए । क्योंकि लोक में दूसरे की रोटी दुर्लभ है। यह कहावत तुम्हारे द्वारा क्या नहीं सुनी गई ? तुम्हारी इच्छा है तो जानो, हमारे लिए तो ससुर कहेंगे तो (हम) जायेंगे। इस प्रकार मित्रों के वचन को सुनकर प्रभात में ससुर के आगे जाकर सीख और आज्ञा मांगी। ससुर भी उसको शिक्षा देकर 'फिर भी पाना' इस प्रकार कहकर कुछ पीछे जाकर आज्ञा दी। इस प्रकार प्रथम दामाद मणीराम, कठोर की हुई रोटी से निकाल दिया गया ।
फिर पत्नी को कहता है--अब " दामादों के लिए तिल के तेल से युक्त रोटी दी जानी चाहिए। वह भोजन के समय दामादों के लिए तिल के तेल से युक्त रोटी देती है । उसको देखकर माधव नामक दामाद विचार करता है । घर में भी यह प्राप्त किया जाता है इसलिए यहां से गमन सुखकारी है, मित्रों को भी कहता है- मैं कल जाऊंगा, क्योंकि भोजन में तेल दिया गया (है)। तब उन मित्रों ने कहा- हमारी सासु विदुषी हैं, क्योंकि शीतल तिलों का तेल ही उदर की अग्नि का उद्दीपक होने के कारण सुन्दर है, घी नहीं, इसलिए तेल देती है । हम सब ही यहां ठहरेंगे । तब माधव नामक दामाद ससुर के पास जाकर सीख व अनुज्ञा मांगता है । तब ससुर ने जाओ, जाओ (कहा), इस प्रकार प्राज्ञा दी, सीख नहीं दी। इस प्रकार तिल के तेल के कारण माधव नाम क दूसरा दामाद गया। तीसरे चौथे दामाद नहीं गए। किस प्रकार ये निकाले जाने चाहिए, इस प्रकार विचार करके उपाय प्राप्त किया हुआ ससुर पत्नी को पूछता है - ये दामाद रात्रि में सोने के लिए कब आते हैं ? तब पत्नी ने कहा -- कभी रात्रि में एक पहर गये आते हैं, कभी दो-तीन पहर गये आते हैं।
पुरोहित ने कहा ~ आज रात्रि में द्वार नहीं खोला जाना चाहिए, मैं जागूंगा। वे दोनों दामाद सायंकाल ग्राम में मनोरंजन के लिए गए । विविध क्रीडाएं (कीला) करते हुए और नाटक देखते हुए मध्यरात्रि में घर के द्वार पर आए । घर को ढका हुआ देखकर द्वार खोलने के लिए उच्च स्वर से पुकारा-द्वार खोलो। तब द्वार के समीप सोने के लिए जागते हुए पुरोहित ने कहा - मध्यरात्रि को भी तुम
प्राकृत अभ्यास सौरम ]
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