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ससुर के घर में रहने वाले चार दामादों की कथा
किसी ग्राम में राजा के राज्य में शान्ति स्थापित करनेवाला पुरोहित रहता था। उसके एक पूत्र और पांच कल्याएं थीं (कन्नगा)। उसके द्वारा चार कन्याएं विज्ञ ब्राह्मण पुत्रों के साथ विवाह करवा दी गई। किसी समय पांचवीं कन्या का विवाह महोत्सव प्रारम्भ हुआ। विवाह में चार दामाद आये । विवाह के पूर्ण होने पर दामादों के अलावा सब सम्बन्धी अपने अपने घर चले गये। भोजन के लोभी दामाद घर में जाने के लिए इच्छुक नहीं थे। पुरोहित ने विचार किया-ये) दामाद सासू के अत्यन्त प्रिय हैं । इसलिए ये पांच छः दिन ठहरे (रुके) हैं पीछे चले जायेंगे । वे भोजन-रस लोभी दामाद बाद में भी जाने के लिए इच्छुक नहीं हुए। आपस में उन्होंने विचार किया- ससुर का गृह मनुष्यों के लिए स्वर्गतुल्य (होता है) । निश्चय ही यह सूक्ति सच्ची है। इस प्रकार विचारकर एक भीत पर यह सूक्ति लिखी गई। एक बार इस सूक्ति को पढ कर ससूर के द्वारा विचार किया गया ये भोजन रस लोभी दामाद कभी भी नहीं जायेंगे, तब ये समझाए जाने चाहिए । इस प्रकार सोचकर उस श्लोक के चरण के नीचे तीन चरण लिखे गये
विवेकीजन 5-6 दिन ही रहते हैं, यदि दही, घी एवं गुड़ का लोभी एक साथ ठहरता है, तो वह गधे के समान मनुष्य मानहीन ही होता है ।
उन दामादों के द्वारा (यद्यपि) तीनों पाद पढ़े गये तब भी भोज नरस के लालची होने के कारण जाने की इच्छा नहीं की। ससुर ने भी विचार किया - ये कैसे निकाले जाने चाहिए ? स्वादिष्ट भोजन में लीन ये गधे के समान मानहीन हैं, इसलिए (ये) युकिन पूर्वक निकाले जाने चाहिए। पुरोहित नित्य पत्नी को पूछता है(तुम) इन दामादों को भोजन के लिए क्या देती हो ? उसने कहा--अतिप्रिय दामादों के लिए तीन बार दहि, घी, गुड़ से मिश्रित अन्न और पकवान सदैव देती हूँ। पुरोहित ने पत्नी को कहा-तुम्हारे द्वारा दामादों के लिए कठोर की हुई स्थूल (ौर) घी लगी हुई रोटी दी जानी चाहिए ।
पति की आज्ञा टाली नहीं जानी चाहिए। इस प्रकार विचारकर वह भोजन के समय उनके लिए स्थूल रोटी घी लगी हुई देती है। उसको देखकर प्रथम
प्राकृत अभ्यास सौरभ ]
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