________________
आयारो
अप्पेगे हिययमब्भे, अप्पेगे हिययमच्छे, अप्पेगे थणमब्भे, अप्पेगे थणमच्छे, अप्पेगे खंधमब्भे, अप्पेगे खंधमच्छे, अप्पेगे बाहुमब्भे, अप्पेगे बाहुमच्छे, अप्पेगे हत्थमन्भे, अप्पेगे हत्थमच्छे, अप्पेगे अंगुलिमब्भे, अप्पेगे अंगुलिमच्छे, अप्पेगे णहमन्भे, अप्पेगे णहमच्छे, अप्पेगे गीवमब्भे अप्पेगे गीवमच्छे, अप्पेगे हणुयमब्भे, अप्पेगे हणुयमच्छे, अप्पेगे हो?मब्भे, अप्पेगे हो?मच्छे, अप्पेगे दंतमब्भे, अप्पेगे दंतमच्छे, अप्पेगे जिब्भमब्भे, अप्पेगे जिब्भमच्छे, अप्पेगे तालुमब्भे, अप्पेगे तालुमच्छे, अप्पेगे गलमब्भे, अप्पेगे गलमच्छे, अप्पेगे गंडमब्भे, अप्पेगे गंडमच्छे, अप्पेगे कण्णमब्भे, अप्पेगे कण्णमच्छे, अप्पेगे णासमब्भे, अप्पेगे णासमच्छे, अप्पेगे अच्छिमब्भे, अप्पेगे अच्छिमच्छे, अप्पेगे भमुहमब्भे, अप्पेगे भमुहमच्छे, अप्पेगे णिडालमब्भे, अप्पेगे णिडालमच्छे, अप्पेगे सीसमन्भे, अप्पेगे सीसमच्छे ।
३०. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए ।
हिंसाविवेग-पदं ३१. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवति ।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org