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________________ उपधान-श्रुत ___३३७ चतुर्थ उद्देशक भगवान् द्वारा चिकित्सा-परिहार १. भगवान् रोग से अस्पृष्ट होने पर भी अवमौदर्य (अल्पाहार) करते थे। वे रोग से स्पृष्ट या अस्पृष्ट होने पर चिकित्सा का अनुमोदन नहीं करते थे। २. वे विरेचन, वमन, तैल-मर्दन, स्नान, मर्दन नहीं करते थे और दन्त-प्रक्षालन भी नहीं करते थे।२२ ३. भगवान् शब्द आदि इन्द्रिय-विषयों में विरत होकर विहार करते थे। वे बहुत नहीं बोलते थे। वे शिशिर ऋतु में छाया में ध्यान करते थे। आहार-चर्या ४. भगवान् ग्रीष्म ऋतु में सूर्य का आतप लेते थे । ऊकडू आसन में लू के सामने मुंह कर बैठते थे। वे कभी-कभी रूखे कोदो, सत्तू और उड़द से जीवन यापन करते थे। ५. भगवान ने इन तीनों का सेवन कर आठ महीने तक जीवन-यापन किया। या उन्होंने कभी-कभी अर्ध मास या एक मास तक पानी नहीं पिया। ६. उन्होंने कभी-कभी दो मास से अधिक और छः मास तक भी पानी नहीं पिया। उनके मन में नींद लेने का संकल्प नहीं होता था। वे रातभर जागृत रहते थे। कभी-कभी वे वासी भोजन भी करते थे। २३ ७. वे कभी दो दिन, तीन, दिन, चार दिन या पांच दिन के उपवास के बाद भोजन करते थे। उनकी दृष्टि [तप-] समाधि पर टिकी हुई थी और [भोजन के प्रति] उनके मन में कोई संकल्प नहीं था। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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