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________________ विमोक्ष २६५ १०७. वह अनशन सत्य है । उसे सत्यवादी [ प्रतिज्ञा का निर्वाह करने वाला ], वीतराग, संसार-समुद्र का पार पाने वाला, 'अनशन का निर्वाह होगा या नहीं' इस संशय से मुक्त, सर्वथा कृतार्थ, परिस्थिति से अप्रभावित, शरीर को क्षणभंगुर जानकर, नाना प्रकार के परीषहों और उपसर्गों को मथकर 'जीव पृथक् है, शरीर पृथक् है- इस भेद - विज्ञान की भावना तथा भैरव अनशन का अनुपालन करता हुआ [ क्षुब्ध न हो ] । १०८. ऐसा करने पर भी उसकी वह काल-मृत्यु होती है । १०९. उस मृत्यु से वह अन्तः क्रिया ( पूर्ण कर्म-क्षय) करने वाला भी हो सकता है। ११०. यह मरण प्राण-मोह से मुक्त भिक्षुओं का आयतन हितकर, सुखकर, कालोचित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है । - ऐसा मैं कहता हूं । सप्तम उद्देशक उपकरण- विमोक्ष १११. जो भिक्षु अचेल रहने की मर्यादा में स्थित है, उसका ऐसा अभिप्राय हो -- 'मैं घास की चुभन को सहन कर सकता हूं ; सर्दी को सहन कर सकता हूं; गर्मी को सहन कर सकता हूं; डांस और मच्छर के काटने को सहन कर सकता हूं, एकजातीय, भिन्नजातीय - नाना प्रकार के स्पर्शो को सहन कर सकता हूं, किन्तु मैं गुप्त अंगों के प्रतिच्छादन (वस्त्र) को छोड़ने में समर्थ नहीं हूं ।' इस कारण से वह कटिबन्धन को धारण कर सकता है । ११२. अथवा जो भिक्षु लज्जा को जीतने में समर्थ हो, वह सर्वथा अचेल रहेकटि-बन्धन धारण न करे । उसे घास की चुभन होती है, सर्दी लगती है, गर्मी लगती है, डांस और मच्छर काटते हैं, फिर भी वह एकजातीय, भिन्नजातीय- नाना प्रकार के स्पर्शो को सहन करे । ११३. वह लाघव का चिन्तन करता हुआ [ अचेल रहे ] । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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