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विमोक्ष
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८१. इस प्रकार वह भिक्षु तीर्थकरों के द्वारा निरूपित धर्म को जानता हुआ शान्त,
विरत और प्रशस्त लेश्या (विचारधारा) में नियोजित आत्मा वाला बने।
८२. [ग्लान भिक्ष प्रकल्प और प्रतिज्ञा का पालन करता हुआ यदि प्राण-विसर्जन
करता है, तो उसकी वह काल-मृत्यु है।
८३. उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया (पूर्ण कर्मक्षय) करने वाला भी हो सकता है।
८४. यह मरणप्राण-मोह से मुक्त भिक्षुओं का आयतन, हितकर, सुखकर, कालो. चित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है।
-ऐसा मैं कहता हूं।
षष्ठ उद्देशक
उपकरण-विमोक्ष ८५.'जो भिक्षु एक वस्त्र और एक पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है, उसका मन
ऐसा नहीं होता कि मैं दूसरे वस्त्र की याचना करूंगा।
८६. वह यथा-एषणीय (अपनी-अपनी कल्प मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय) वस्त्र
की याचना करे।
८७. वह यथा-परिगृहीत वस्त्रों को धारण करे-न छोटा-बड़ा करे और न
संवारे।
८८. वह उन वस्त्रों को न धोए, न रंगे और न धोए-रंगे वस्त्रों को धारण करे ।
८९. वह ग्रामान्तर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाकर न चले।
९०. वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करे।
९१. यह वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री (उपकरण-समूह) है।
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