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________________ विमोक्ष ६८. यह वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री ( उपकरण - समूह ) है । ६९. भिक्षु यह जाने कि हेमन्त बीत गया है, ग्रीष्म ऋतु आ गई है, तब वह यथापरिजीर्ण वस्त्रों का विसर्जन करे। उनका विसर्जन कर - २८५ ७० या वह एक शाटक रहे । ७१. या वह अचेल (वस्त्र - रहित ) हो जाए । ७२. वह लाघव का चिन्तन करता [ वस्त्र का क्रमिक विसर्जन करे ] | ७३. अल्प वस्त्र वाले मुनि के [ उपकरण - अवमोदर्य तथा काय- क्लेश ] तप होता है । ७४. भगवान् ने जैसे अल्प - वस्त्रत्व का प्रतिपादन किया है, उसे उसी रूप में जानकर सब प्रकार से, सर्वात्मना (सम्पूर्ण रूप से) समत्व का सेवन करे - किसी की अवज्ञा न करे । ग्लान द्वारा भक्त-परिज्ञा ७५. जिस भिक्षु को यह लगे- मैं [ रोग से ] आक्रान्त होने के कारण दुर्बल हो गया हूं। मैं भिक्षाचर्या के निमित्त नाना घरों में जाने में समर्थ नहीं हूं । इस प्रकार कहने वाले भिक्षु को गृहस्थ अपने घर से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य लाकर दे ! वह भिक्षु पहले ही आलोचना करे -- [ यह आहार किस दोष से दूषित है । ] [ आलोचना कर कहे - ] 'आयुष्मन् गृहपति ! यह घर से लाया हुआ अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य मैं खा-पी नहीं सकता।' इस प्रकार के दूसरे [ दोष से दूषित आहार के लिए भी वह गृहपति को प्रतिषेध कर दे] । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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