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________________ विमोक्ष २८३ ५८. उस तपस्वी के लिए वह श्रेय है, जिसका किसी ब्रह्मचर्य-निष्ठ भिक्षु को आचरण करना चाहिए-स्त्री से आक्रान्त हो जाने पर गले में फांसी लेकर प्राण-विसर्जन कर देना चाहिए। ५९. ऐसा करने पर भी उसकी वह काल-मृत्यु होती है । १६ ६०. उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया (पूर्ण कर्म-क्षय) करने वाला भी हो सकता है।" ६१. यह मरण प्राण-मोह से मुक्त भिक्षुओं का आयतन, हितकर, सुखकर,, कालोचित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है।१६ -ऐसा मैं कहता हूं। पंचम उद्देशक उपकरण-विमोक्ष ६२ जो भिक्षु दो वस्त्र और एक पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है, उसका मन ऐसा नहीं होता कि मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूंगा। ६३. वह यथा-एषणीय (अपनी-अपनी कल्प-मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय) वस्त्रों की याचना करे। ६४. वह यथा-परिगृहीत वस्त्रों को धारण करे-न छोटा-बड़ा करे और न संवारे। ६५. वह उन वस्त्रों को न धोए, न रंगे और न धोए-रंगे हुए वस्त्रों को धारण करे। ६६. वह ग्रामान्तर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाकर न चले। ६७. वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करे। ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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