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विमोक्ष
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५८. उस तपस्वी के लिए वह श्रेय है, जिसका किसी ब्रह्मचर्य-निष्ठ भिक्षु को
आचरण करना चाहिए-स्त्री से आक्रान्त हो जाने पर गले में फांसी लेकर प्राण-विसर्जन कर देना चाहिए।
५९. ऐसा करने पर भी उसकी वह काल-मृत्यु होती है । १६
६०. उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया (पूर्ण कर्म-क्षय) करने वाला भी हो सकता है।"
६१. यह मरण प्राण-मोह से मुक्त भिक्षुओं का आयतन, हितकर, सुखकर,, कालोचित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है।१६
-ऐसा मैं कहता हूं।
पंचम उद्देशक
उपकरण-विमोक्ष ६२ जो भिक्षु दो वस्त्र और एक पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है, उसका मन
ऐसा नहीं होता कि मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूंगा।
६३. वह यथा-एषणीय (अपनी-अपनी कल्प-मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय) वस्त्रों
की याचना करे।
६४. वह यथा-परिगृहीत वस्त्रों को धारण करे-न छोटा-बड़ा करे और न
संवारे।
६५. वह उन वस्त्रों को न धोए, न रंगे और न धोए-रंगे हुए वस्त्रों को धारण
करे।
६६. वह ग्रामान्तर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाकर न चले।
६७. वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करे।
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