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________________ ९२. वह (घोर धर्म की उपेक्षा करने वाला) विषण्ण (काम-भोग के पंक में मग्न) और वितर्क (हिंसक) कहलाता है। ऐसा मैं कहता हूं। ९३. 'हे [आत्मन् ! ] इस स्वजन का मैं क्या करूंगा ?'-यह मानते और कहते हुए कुछ लोग माता-पिता, ज्ञाति और परिग्रह को छोड़ वीरवृत्ति से प्रवजित होते हैं-अहिंसक, सुव्रती और दान्त बन जाते हैं। ९४. [पराक्रम की दृष्टि से] दीन बने हुए और उठकर गिरते हुए कुछ मुनियों को तू देख। ६५. विषय से पीडित कायर मनुष्य [व्रतों का] विध्वंस करने वाले होते हैं। ९६. कुछ [ संयम से च्युत होने वाले] मुनियों की निन्दनीय प्रसिद्धि होती है, जैसे__'यह विभ्रान्त श्रमण है, यह विभ्रान्त श्रमण है।' ९७. तुम देखो--संयम से च्युत होने वाले मुनि सम्यग् आचार वालों के बीच असम्यग् आचार वाले, [संयम के प्रति समर्पित मुनियों के बीच [संयम के प्रति] असमर्पित, विरत मुनियों के बीच अविरत तथा चारित्र से सम्पन्न मुनियों के बीच चारित्र से दरिद्र होते हैं। ९८. [उत्प्रवजित होने के परिणामों को] जानकर पंडित, मेधावी, [संयम-साधना द्वारा कृतार्थ] और वीर मुनि सदा आगम [में प्रतिपादित अर्थ ] के अनुसार पराक्रम करे। -ऐसा मैं कहता हूं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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