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लोकसार
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"जीवे णं भन्ते जीवे? जीवे जीवे ?" "गोयमा ! जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे विनियमा जीवे ।" "भन्ते ! आत्मा जीव है या चैतन्य जीव है ?"
भगवान्-"गौतम ! आत्मा नियमतः जीव है और चैतन्य भी नियमतः जीव है।"
-इस सूत्र से तुलनीय है।
सूत्र-१११ ४४. स्वावलम्बी दूसरों पर निर्भर नहीं होता । वह अपने-आप में और अपनी उपलब्धियों में ही संतुष्ट रहता है । देखें, उत्तराध्ययन सूत्र, २६।३४ ।
सूत्र-११३ ४५. धर्म और दर्शन के क्षेत्र में परीक्षा मान्य रही है । किसी भी प्रवाद (दर्शन)को स्वीकार करने वाला दूसरे प्रवादों की परीक्षा करना चाहता है । भगवान् महावीर ने इस परीक्षा की स्वीकृति दी। उन्होंने कहा-"मुनि अपने प्रवाद को जानकर दूसरे प्रवादों को जाने, उसकी परीक्षा करे। किन्तु उसके पीछे राग-द्वेष का दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए। अपने प्रवाद के प्रति राग और दूसरे प्रवादों के प्रति द्वेष नहीं होना चाहिए। अपने प्रवाद की विशेषता और दूसरे प्रवादों की हीनता दिखाने का मनोभाव नहीं होना चाहिए। परीक्षा-काल में पूर्ण मध्यस्थ भाव और समभाव होना चाहिए।"
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