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________________ सम्यक्त्व १५९ २० [दार्शनिक-] जगत् में कुछ श्रमण और ब्राह्मण परस्पर-विरोधी मतवाद का निरूपण करते हैं। कुछ कहते हैं-"हमने देखा है, सुना है, मनन किया है और भली-भांति समझा है, कंची, नीची और तिरछी सब दिशाओं में सब प्रकार से इसका निरीक्षण किया है कि किसी भी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन किया जा सकता है, उन पर शासन किया जा सकता है, उन्हें दास बनाया जा सकता है, परिताप दिया जा सकता है, उनका प्राण-वियोजन किया जा सकता है। तुम जानो कि हिंसा में कोई दोष नहीं है।" २१. यह [हिंसा का प्रतिपादन] अनार्य-वचन है। २२. जो आर्य हैं, उन्होंने ऐसा कहा है-"हिंसावादियो! आपने दोष-पूर्ण देखा है, दोष-पूर्ण सुना है, दोष-पूर्ण मनन किया है, दोष-पूर्ण समझा है, ऊंची, नीची और तिरछी सब दिशाओं में दोष-पूर्ण निरीक्षण किया है, जो आप ऐसा आख्यान करते हैं, भाषण करते हैं, प्ररूपण करते हैं एवं प्रज्ञापन करते हैं कि किसी भी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन किया जा सकता है, उन पर शासन किया जा सकता है, उन्हें दास बनाया जा सकता है, परिताप दिया जा सकता है, उनका प्राण-वियोजन किया जा सकता है । तुम जानो कि हिंसा में कोई दोष नहीं है। २३. "हम इस प्रकार आख्यान करते हैं, भाषण करते हैं, प्ररूपण करते हैं एवं प्रज्ञापन करते हैं कि किसी भी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन नहीं करना चाहिए, उन पर शासन नहीं करना चाहिए, उन्हें दास नहीं बनाना चाहिए, परिताप नहीं देना चाहिए, उनका प्राण-वियोजन नहीं करना चाहिए। तुम जानो कि अहिंसा (सर्वथा) निर्दोष है।" २४. यह [अहिंसा का प्रतिपादन] आर्य-वचन है। २५. सर्वप्रथम [दार्शनिकों को अपने-अपने सिद्धान्तों में स्थापित कर हम पूछेगेहे दार्शनिको ! क्या आपको दुःख प्रिय है या अप्रिय ? Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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