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सूत्र - ८२
२४. द्वेष, घृणा, क्रोध - ये शस्त्र हैं । मैत्री, क्षमा – ये अशस्त्र हैं । शस्त्र में विषमता होती है । विषमता अर्थात् अपकर्ष और उत्कर्ष । अतः कोई मनुष्य 'अ' के प्रति मंद द्वेष करता है । 'ब' के प्रति तीव्र द्वेष करता है । 'क' के प्रति तीव्रतर द्वेष करता है । 'ख' के प्रति तीव्रतम द्वेष करता है । इस प्रकार शस्त्र मंद, तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम होता है । अशस्त्र में समता होती है । समभाव एकरूप होता है । वह 'अ' के प्रति मंद और 'ब' के प्रति तीव्र नहीं हो सकता ।
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हिंसा शस्त्र से ही नहीं होती । वह स्वयं शस्त्र है । हिंसा का अर्थ है - असंयम । जिसकी इन्द्रियां और मन असंयत होते हैं, वह प्राणीमात्र के लिए शस्त्र होता है ।
अहिंसा अशस्त्र है । प्राणिमात्र के प्रति संयम होना अहिंसा है । जिसकी इन्द्रियां और मन संयत होते हैं, वह प्राणीमात्र के लिए अशस्त्र होता है ।
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आयारो
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