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________________ लोक-विजय ११९ ध्यान करने से-मानसिक धारा को प्रवाहित करने से संकल्प-शक्ति विकसित होती है । इन्द्रियों का आकर्षण विषयों के प्रति होता है। विषय-विरति के प्रति उनका आकर्षण नहीं होता। इसलिए कभी-कभी साधक के मन में विषय-विरति के प्रति अरति उत्पन्न हो जाती है। उस अरति को सहने वाले साधक का संकल्प शिथिल हो जाता है। जो साधक अरति को सहन नहीं करता, विषय-विरति के प्रति अपने मन की धारा को प्रवाहित करता है, वह अपनी संकल्प-शक्ति का विकास कर संयम को सिद्ध कर लेता है। भगवान महावीर की साधना अप्रमाद (जागरूकता) और पराक्रम की साधना है। साधक को सतत अप्रमत्त और पराक्रमी रहना आवश्यक है। साधना-काल में यदि किसी क्षण प्रमाद आ जाता है-अरति, रति का भाव उत्पन्न हो जाता है, तो साधक उसी क्षण ध्यान के द्वारा उसका विरेचन कर देता है। इससे वह संस्कार नहीं बनता, ग्रंथिपात नहीं होता । अरति-रति का रेचन न किया जाए, तो उससे विषयानुबन्धी चित्त का निर्माण हो जाता है। फिर विषय की आसक्ति छूट नहीं सकती। अतः सूत्रकार ने इस विषय में साधक को बहुत सावधान रहने का निर्देश दिया है। सूत्र-१६८ ३२. सुवसु मुनि संयम-धन से सम्पन्न साधना में सुखद वास करने वाला अथवा मुक्ति-गमन के योग्य होता है। वह साधना-पथ का निरूपण करने में ग्लानि का अनुभव नहीं करता। सूत्र-१७१ ३३. लौकिक भाषा में अप्रिय वेदना को दुःख कहा जाता है। धर्म की भाषा में दुःख का हेतु भी दुःख कहलाता है। दुःख का हेतु कर्म-बंध है। भगवान् ने जनता को यह विवेक दिया-बंध है और बंध का हेतु है । मोक्ष है और मोक्ष का हेतु है। सूत्र-१७३ ३४. भगवान् महावीर की साधना का मौलिक आधार है अप्रमाद-निरन्तर जागरूक रहना । अप्रमाद का पहला सूत्र है-आत्म-दर्शन । भगवान् ने कहाआत्मा से आत्मा को देखो-संपिक्खिए अप्पगमप्पएणं ।' अनन्य-दर्शन का अर्थ आत्म-दर्शन है । जो आत्मा को देखता है, वह आत्मा में रमण करता है ; जो आत्मा में रमण करता है, वह आत्मा को देखता है । दर्शन के १. दशवकालिक चूलिका, २।११ । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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