SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ आयारो धर्मोपकरण के बिना जीवन का निर्वाह नहीं होता। इसलिए उसका ग्रहण किया जाता है । फिर भी उसका यह चिन्तन बना रहना चाहिए कि नौका के बिना समुद्र को पार नहीं किया जा सकता। समुद्र का पार पाने के लिए नौका आवश्यक हैं, किन्तु समुद्रयानी उसमें आसक्त नहीं होता, वैसे ही जीवन चलाने के लिए आवश्यक धर्मोपकरण में मुनि को आसक्त नहीं होना चाहिए। सूत्र-११० १७. वस्तु का अपरिभोग और परिभोग-ये दो अवस्थाएं हैं। वस्तु का अपरिभोग एक निश्चित सीमा में ही हो सकता है । जहां जीवन है, शरीर है, वहां वस्तु का उपभोग-परिभोग करना ही होता है। एक तत्त्वदर्शी मनुष्य भी उसका उपभोगपरिभोग करता है और तत्त्व को नहीं जानने वाला भी। किन्तु इन दोनों के उद्देश्य, भावना और विधि में मौलिक अन्तर होता है उद्देश्य भावना विधि तत्त्व को नहीं पौद्गलिक सुख आसक्त असंयत जानने वाला तत्त्वदर्शी आत्मिक विकास के अनासक्त संयत लिए शरीर-धारण __ सूत्र-१२५ १८, चित्त को काम-वासना से मुक्त करने का पहला आलंबन है-लोक-दर्शन । १. लोक का अर्थ है-भोग्य वस्तु या विषय । शरीर भोग्य वस्तु है। उसके तीन भाग हैं १. अधो भाग-नाभि से नीचे, २. ऊर्ध्व भाग-नाभि से ऊपर, ३. तिर्यग् भाग-नाभि-स्थान । प्रकारान्तर से उसके तीन भाग ये हैं१. अधो भाग-आंख का गड्ढा, गले का गड्ढा, मुख के बीच का भाग। २. ऊर्ध्व भाग-घुटना, छाती, ललाट, उभरे हुए भाग। ३. तिर्यग् भाग–समतल भाग। साधक देखे-शरीर के अघो भाग में स्रोत है, ऊर्ध्व भाग में स्रोत है और मध्य भाग में स्रोत-नाभि है । मिलाइए ५।११७ । शरीर को समग्र दृष्टि से देखने की साधना-पद्धति बहुत महत्त्वपूर्ण रही है। प्रस्तुत सूत्र में उसी शरीर-विपश्यना का निर्देश है । इसे समझने के लिए 'विशुद्धिभग्ग' छट्ठा परिच्छेद पठनीय है। (विशुद्धिमग्ग, भाग १, पृ० १६०-१७५) । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy