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________________ भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगबिन्दु 39 यद्यपि मन बड़ा चंचल' है फिर भी योगियों ने उसे अपने वश में करके अपने ही अनुरूप चलाया है । इसलिए मन का संयमी होना आवश्यक है। ध्यान योगसाधना में तो मन का वशीभूत होना और भी आवश्यक है । ध्यान का लक्षण हो है मन को विषयों से रहित करनाध्यानं निर्विषयं मनः । मन के कारण ही इन्द्रियां चंचल होतो हैं, जो आत्मज्ञान में बाधक हैं तथा एकोन्मुखता के मार्ग में भटकाव पैदा करती हैं । मन की अस्थिरता के कारण ही रागादि भावों की वृद्धि होती हैं तथा कर्मों का बन्ध होता है । अतः चंचल मन को स्थिर करना योग की पहली शर्त है क्योंकि मन ही समाधि, योग का हेतु तथा तप का निदान है और मन का स्थिर करने के लिए तप आवश्यक है । तप शिवशर्म अर्थात् मोक्ष का मूल कारण है । विक्षिप्त मन का स्वभाव चञ्चल होता है जबकि यातायात मन उसकी अपेक्षा कुछ कम चञ्चल होता है । इसलिए योग साधकों के लिए इन दो प्रकार के मन पर नियन्त्रण करना आवश्यक है । " १. २. ३. ४. योगशास्त्र के अनुसार मन के चार भेद हैं (१) विक्षिप्त मन, (२) यातायात मन, ( ३ ) श्लिष्ट मन और (४) सुलीन मन ५.. असंशयं महाबाहो मनो दुग्रिहं चलम् । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ गीता, ६ . २५ दे० सांख्यसूत्र, ६.२५ योगस्य हेतुर्मानसः समाधिपरं निदानं तपश्च योगः । तपश्च मूलं शिवशर्ममनः समाधिं भज तत्कथंचित् ॥ अध्यात्मकल्मद्रुम, ६ . १५ इह विक्षिप्तं यातायातं श्लिष्टं तथा सुलीनं च । चेतश्चतुःप्रकारं तच्चचमत्कारि भवेत् ॥ योगशास्त्र, १२.२ विक्षिप्तं चलमिष्टं यातायातं च किमपि सानन्दम् । प्रथमाभ्यासे द्वयमपि विकल्पविषयग्रहतत्स्यात् ॥ वही १२.३ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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