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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
प्रयोग आध्यात्मिक अर्थ में किया है। जैन योग को व्यवस्थित रूप देने का श्रेय भी हरिभद्रसूरि को ही है। आप की योग सम्बन्धी पांच रचनाएं हैं--(१) योगविशिका, (२) योगशतक, (३) योगदृष्टिसमुच्चय, (४) योगबिन्दु (५) और षोडशक ।' (९) योगसारप्राभूत
इस योग परक संस्कृत ग्रंथ के रचयिता वीतारागी आचार्य अमितगति हैं। इनका समय १०वीं शताब्दी है। योगसार प्राभृत में ४५० श्लोक हैं जिन्हें : अधिकारों में रखा गया है। इस ग्रंथ में योग सम्बन्धी अपेक्षित विषय का विस्तृत वर्णन है। अन्त में मोक्ष के विषय में भी यहां अधिक प्रकाश डाला गया है ।
(१०) ज्ञानार्णव
आचार्य शुभचन्द्र कृत इस ग्रंथ ज्ञानार्णव के दो और नाम मिलते हैं-(१) योगार्णव और (२) योगप्रदीप । इनका समम विक्रम की १२वीं शताब्दी है । ज्ञानार्णव में ३६ प्रकरण है जिनमें २२३० श्लोक हैं। इसमें बारह भावना, भवबन्धन के कारण मन, आत्मा के साथ-साथ यमनियम, आसन और प्राणायाम आदि का विश्लेषण है। इसके साथ ही मन्त्र, जप, शुभाशुभ शकुन, नाड़ी आदि का भी वर्णन किया गया है। ११ योगशास्त्र
यह ग्रंथ १२वीं शताब्दी के कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है । वस्तुतः यह ग्रंथ योग परम्परा में बहुत चचित है, जो कि एक हजार श्लोक प्रमाण है। इस पर उनकी एक स्वोपज्ञवृत्ति भी मिलती है। ग्रंथ में कथाओं के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया गया है। वृत्ति के १२ हजार श्लोक हैं। योगशास्त्र पर ज्ञानार्णव का अत्यधिक प्रभाव परिलक्षित होता है।
योगशास्त्र में १२ प्रकाश हैं। प्रथम तीन अध्यायों (प्रकाशों) में
१. विशेष के लिए दे०-प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का द्वितीय अध्याय ।
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