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योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
(२) मोक्षप्राभूत
इस ग्रन्थ के प्रणेता आचार्य कुन्दकुन्द हैं। इनका समय अनुमानतः ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी निश्चित है। मोक्षप्राभूत शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध है जिसमें केवल १०६ गाथाएं हैं। इन गाथाओं में मोक्षलाभ के लिए साधनायोग पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है।
गृहस्थ और मुनि दोनों ही प्रकार के साधकों की साधना का विधिविधान इसमें वर्णित है। इसकी रचना योगशतक के रूप में की गई प्रतीत होती है।
पातजल योगदर्शन में योग के जिन यम-नियम आदि आठ अंगों का निरूपण किया गया है उनमें से प्राणायाम की छोड़ कर शेष सात का विषय यहां पर स्पष्ट रूप से जैन परम्परानुसार पाया जाता है।
(३) समयसार
यह भी आचार्य कुन्दकुन्द की अनन्य रचना है। इसकी भाषा भी शौरसेनी प्राकृत है । इसमें ४३७ गाथाएं हैं। इसमें जैन योग का विशद विवेचन किया गया है। इनके अतिरिक्त आचार्य कुन्दकुन्द ने जैन मुनिसाधना के आचार-विचार से सम्बन्धित तीन रचनाएं और भी लिखी हैं, वे हैं—नियमसार, प्रवचनसार और समाधितन्त्र। ये सभी शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध है। (४) तत्त्वार्थसूत्र
इस ग्रन्थ के प्रणेता आचार्य उमास्वाति या उमास्वामी है। इनका समय विक्रम की पहली से चौथी शदी के बीच निश्चित किया जाता है। तत्त्वार्थसूत्र मोक्ष मार्ग का प्रतिपादक एक अनूठा संस्कृतसूत्र ग्रन्थ है । इसमें दस अध्याय हैं । इसके भी योग-निरूपण में प्रायः चारित्र का ही विशेष वर्णन किया गया है क्योंकि यथार्थ चारित्र से हो
१. दे० स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा, प्रस्तावना, पृ० ७० २. दे० भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० ११६ ३. विशेष के लिए दे०-संघवी, तत्त्वार्थसूत्र, प्रस्तावना, पृ० ६
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