SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिच्छेद-प्रथम भारतीय वाङ्मय में योगसाधना और योगबिन्दु (क) योग का माहात्म्य : योग साधना का प्रारम्भ कब हुआ? इस विषय में निश्चित रूप से कुछ कह पाना सम्भव नहीं है फिर भी लगता है और जैसे कि सभ्यता के अवशेषों में प्रमाण भी मिलते हैं, योग साधना का प्रचलन तभी से हुआ होगा जब मानव ने अपने जन्म के बाद बोलना सीखा, कारणकि चिन्तन, मनन एवं विजनन शक्ति मानव के स्वाभाविक गुणों से भिन्न नहीं है। प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की खोजों से ज्ञात होता है कि योग, साधना, ध्यान,लगाना, कायोत्सर्ग करना, पद्मासन मद्रा में ध्यानमग्न होना आदि वैदिककाल से भी पहले के भारतीयों की दैनिक चर्या का एक महत्त्वपूर्ण अंग था। उपलब्ध वेद, बौद्ध एवं जैनागम, उपनिषद्, पुराण, दर्शन एवं कर्मकाण्ड तथा ज्ञानप्रधान समस्त पौर्वात्य एवं पाश्चात्य दर्शन योग, समापत्ति एवं ध्यान साधना की महिमा से ओतप्रोत है। वैदिक युग से लेकर आधुनिकयुग तक भी हम देखें तो पाते हैं कि आज भी योग की वही महिमा, गरिमा एवं उतनी ही अधिक आवश्यकता है जितनी कि पहले थी। पौर्वात्य ही क्या, समस्त पाश्चात्य जगत के मानव आज योग साधना के रहस्य की खोज में भटक रहे हैं। अत: योग का माहात्म्य स्वतः सिद्ध हो जाता है। हरिभद्रसूरि के वचनों में भी योग सर्वश्रेष्ठ, कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न, सभी धर्मों में प्रधान और सिद्धिरूप मोक्षपद प्राप्ति का सुदृढ़ सोपान है । वास्तव में योग ही भयंकर भवरोग के समूलघात की रामबाण औषधि है। १. योगः कल्पतरु श्रेष्ठो योगश्चिन्तामणिः परः। योग: प्रधानं धर्माणां योगः सिद्धेः स्वयंग्रहः ॥ योगबिन्दु, श्लो० ३७ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy