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________________ योग : ध्यान और उरके भेद 239 अनिवृत्तिकरण गुणस्थान का जितना काल है, उतने ही, उसके परिणाम हैं । इसलिए उसके काल के प्रत्येक समय में अनिवृत्तिकरण का एक ही परिणाम होता है। तथा ये परिणाम अत्यन्त निर्मल ध्यान रूप अग्नि की त्रिखाओं की सहायता से कर्मवन को भस्म कर देते हैं। (१०) सूक्ष्मसम्पराय उपशामक क्षपक गुणस्थान इममें आने वाले सभी श्रेणीयों के जीव सूक्ष्म लोभ का वेदन करते है । अतः इसे सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान कहते हैं । सक्ष्मसम्पराय का अर्थ है सक्ष्म कषाय । उपशमश्रेणी वाला जीव उस सूक्ष्म लोभ का उपशम करके ग्यारहवें गुणस्थान में पहुचता है और क्षपकश्रेणी वाला जीव उसका क्षय करके बारहवे गुण में पहुंचता है । दोनों श्रेणियों के इस भेद को बतलाने के लिए ही इस गुणस्थान का नाम सूक्ष्मसम्पराय उपशामक क्षपक नाम दिया गया है। इसमें सूक्ष्म लोभ संज्वलन व लोभ के सूक्ष्म खण्डों का वेदन होता है। इसकी काल स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है ।। गोम्मट्टसार के अनुसार जिस प्रकार धुले हुए गुलाबी वस्त्र में लालिमा-मूक्ष्म रह जाती है उसी प्रकार जो जीव अत्यन्त सूक्ष्म राग एव लोभकषाय मे युक्त है, उसको सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान कहते हैं । (११) उपशान्तमोह गुणस्थान निर्मली फल से पुक्त जल की तरह अथवा शरद ऋतु में ऊपर से स्वच्छ हो जाने वाले सरोवर के जल की तरह, सम्पर्ण मोहनीयकर्म के उपशम से होने वाले निर्मल परिणामों को उपशान्तकषाय गुणस्थान कहते हैं। इसका दूसरा नाम उपशान्त' कषाय वीतराग छदमस्थगण स्थान भी है। १. एकनिहकानसमये, मंठाणादीहि जह णिति । णणिवट्टति तहावि य परिणामेहिमिहोजेहिं ॥ गो० जीवकाण्ड गा० ५६ २. दे. कर्म ग्रा, भाग 2, पृ. ३५ तथा समवायांगसूत्र, रमवाय १४ ३, गोम्मट्टसार, जीव काण्ड, गा० ५८ ४. गोम्मट्टसार, गा० ६१ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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