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________________ (xIx) सहज व समाधि युक्त थी। आचारांगसूत्र में और एक शब्द आता है— 'आयतयोग" । इस का अर्थ वृत्तिकार ने मन-वचन-काया का संयतयोग किया है परन्तु इसकी अतेक्षा इसे जन्मयतायोग कहना अधिक उपयुक्त होगा। भगवान् किसी भी क्रिया को करते समय उसमें तन्मय हो जाते थे। यह योग अतीत का स्मति और भविष्य की कल्पना से परे केवल वर्तमान में रहने की क्रिया में पूर्णतया तन्मय होने की प्रक्रिया है। वे भगवान् चलते, खातेपीते. उठते-बैटते समय सदैव निरन्तर इस आयतयोग का ही आश्रय लेते थे। वे चलते समय केवल चलते थे। वे चलते समय न तो इधरउधर झांकते, न बातें या स्वाध्याय करते और न ही चिन्तन करते थे। यही बात खाते समय भी, वे केवल खाते थे, न तो स्वाद की ओर ध्यान देते, न चिन्तन, व बातचीत । वर्तमान क्रिया के प्रति वे पूर्ण जाग्रत एवं सर्वात्मना समर्पित थे। पाञ्जल योगसूत्र में वर्णित अष्टांगयोग जन दृष्टि पर अधिक निर्भर है जैसे कि- (१) यम : यम पाँच हैं : अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । जैन दष्टि अतुसार पांच महाव्रत भी ये हो हैं। यहीं बात हरिभद्रसूरि ने भी कही है। इतना अवश्य है कि इन व्रतों के प्रति योगसूत्र की अपेक्षा जैनदृष्टि अधिक सूक्ष्म है । योगशास्त्र के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय प्रकाश में हेमचन्द्राचार्य ने व्रतों का विस्तृत वर्णन किया है। (२) नियम : योग का द्वितीय चरण है नियम। यह नियम सा कजीवन में तेजस्विता लाते हैं । पतंजलि के नियमों के समकक्ष हम समवायाङ्गसूत्र में बताए हुए बत्तीस योग संग्रह को रख सकते हैं । मोक्ष की साधना को सुचारु रूप से सम्पन्न करने हेतु मन-वचन-काया के प्रशस्त व्यापार रूप यह बत्तीस योग संग्रह है। जैसे आलोचना आपत्सु दृढ़धर्मता, अनाश्रित उपधान, निष्प्रतिकर्मता, तितिक्षा, धृति, मति, सवेग, विनयोपगत प्रणिधि, अलोभता, निरपलाप इत्यादि । (३) आसन : चित्त-स्थैर्य योग का प्राण है । इसकी सिद्धयार्थ काय-स्थैर्य का पद्धतिपूण अभ्यास है । आसन का सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से काया के साथ और परोक्षरूप से वचन एवं मन के साथ भी है । धेरण्ड Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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