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________________ 163 योगबिन्दु की विषय वस्तु इनका अवकाश ही लोक है-लोकाकाशेऽवगाहः ।। लोक के अधः, मध्य और ऊर्ध्व ये तीन भाग हैं । अधोलोक में सात नरक भूमियां हैं जो चनोदधि (जमा हुआ पानी), घनवात (जमी हुई वायु) और तनुवात (पतली वाय) से वेष्टित है। ये तीनों इतने प्रबल हैं जिससे ही यह पृथ्वी धारण की हुई है। यह लोक अधोभाग में वेत्रासन के आकार का है अर्थात् नीचे विस्तार वाला और ऊपर क्रमशः सिकुड़ा हुआ है। मध्य में झालर के आकार का और ऊपर मृदंग के समान है। तीनों लोकों की यह आकृति मिलकर लोकाकाश बनता है। जो साधक उपशम परिणामरूप परिणत होकर, लोक के स्वरूप का ध्यान करता है, वह कर्मपुञ्ज को नष्ट करके लोक शिखामणिरूप सिद्धत्व को प्राप्त होता है। सिद्ध, मुक्त हो जाता है। इस प्रकार लोकभावना में लोकस्वरूप को समझकर साधक मन भ्रमण से मुक्ति पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है । १. तत्त्वार्थसूत्र ५.१२ २. लोको जगत्त्रयाकीर्णाभ वः सप्नात्र वेष्टिताः। धनोम्मोधि महावात तनुवतेर्महाबलः ॥ योगशा०, ४.१०४ तथा मिला० वेष्टित: पवनः प्रान्ते महावेगैर्महाबलैः । त्रिभिस्त्रिभुवनाकीर्णो लोकस्तालतरुस्थितिः ॥ ज्ञानार्णव सर्ग २, लोकभावना, श्लोक २ वेत्रासनसमोऽधस्तान्मध्यतो झल्लरीनिभः । अग्ने मुरजसंकाशो लोकः स्यादेवमाकृतिः ॥ योगशा०, ४.१०५ तथा मिला०अधो वेत्रासनाकारो मध्ये स्याउझल्लरी निभः । मृदङगसदृशश्चाग्रे स्यादित्थं स त्रयात्मकः ॥ ज्ञानार्णव सर्ग २, लोक भावना श्लोक ५ ४. एवं लोयसहावं जो झायदि उवसमेक्कसम्भावो। सो खविय कम्मपुजं तिल्लोयसिहामणी होदि ॥ स्वामिकार्तिकेया०, गा० २८३ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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