________________
(xii) का आत्म-विशुद्धि के परम कारण रूप भावतप में परिणमन का हेतु है।
ध्येय विहीन जीवन व्यर्थ क्रिया स्वरूप है। ध्येय विहीन साधक की तुलना विवेक मार्तण्ड में गधे के साथ की गई है। जैसे गधा भी धूल से लथपथ रहता है, सदा सर्दी-गर्मी सहन करता है, पर उसका यह धूल में लोटना एवं सर्दी-गर्मी सहना व्यर्थ तथा उद्दश्य विहीन होता है, वैसे ही जिस साधक का संकल्प स्पष्ट नहीं है तब उसका धूल में जीवन व्यतीत करना तथा शारीरिक कष्टों को सहन करना केवल बाह्य आडम्बर मात्र है। उससे अन्तरशुद्धि रूप महत् लाभ उपलब्ध नहीं हो सकता । अतः किसी भी कार्य में संलग्न होने से पहले उसके उद्देश्य के प्रति स्पष्ट दृष्टि होना आवश्यक है। जीवन कोई न कोई ध्येय युक्त अवश्य ही होना चाहिए और केवल ध्येय यक्त ही नहीं, ध्येय भी उच्च होना आवश्यक है, अन्यथा विपरीत ध्येय जन्य परिणाम भो विपरीत ही होगा।
भारतीय संस्कृति का उच्चतम ध्येय है मोक्ष । संसार दुःख से विमुक्त होना ही परम पुरुषार्थ है चाहे वह तत्त्वज्ञान हो, आचार हो, काव्य हो याकि नाटक मात्र, किन्तु काम विषयक कामशास्त्र का अन्तिम ध्येय चतुर्थ पुरुषार्थ मोक्ष ही है। इस कारण भारतीय संस्कृति को आध्यात्मिक संस्कृति के नाम से अभिहित किया गया है।
भारतीय विचारकों का चिन्तन बहुमुखी रहा है। उन्होंने जीवन के आवश्यक पहलुओं पर गहन व तीव्र अनुभूति पूर्ण तथ्यों को उद्घाटित किया है । शारीरिक एवं पदाथिक आयामो से उपरत एक ऐसा भी आयाम है जो बौद्धिक तर्क एवं चर्चाओं से परे है। जो केवल अनुभव जन्य है और उस अनुभव का जनक है—योग।
योग एक ब्रह्मविद्या है। उसकी गति क्षर से अक्षर की ओर है। योग कोई सम्प्रदाय या दर्शन विशेष न होकर जीवन के अन्तर रहस्य की प्राप्ति की सहज प्रक्रिया है। योग का कार्य दर्शनशस्त्र की तरह सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना नहीं वरन् अन्तस् अनुभूतियों का जागरण है । ___ मोक्ष रूपी लक्ष्य सिद्धि का प्रधान व्यवधान है-मन और प्रधान सहयोगी भी है-मन । कहा भी गया है-मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः । व्यास ने भी कहा है
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org