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० संयम में पराक्रम दुर्लभ है। ० धन से धर्म नहीं होता। ० जो जानता है, मैं नहीं मरूंगा, वही कल की इच्छा कर सकता है। ० जीवन विद्युत् की चमक के समान चंचल है। ० मनुष्यों में अनेक अभिप्राय होते हैं। ० मन दुष्ट अश्व है।
जीवन के यही शाश्वत-सत्य सूक्तियों में गुम्फित हैं। शक्ति से न्याय
जीवन में सफलता का महत्त्वपूर्ण साधन है पुरुषार्थ।
'ण हु वीरियपरिहीणो, पवतत्ते णाणमादीसु'-वीर्य से हीन ज्ञान आदि में भी प्रवृत्त नहीं हो सकता। निर्वीर्यः किं करिष्यसि? इसलिये कहा गया -
'वीरियं पुण दुल्लहं' उत्तर. ३/१०
पुरुषार्थ अत्यंत दुर्लभ है। धन से धर्म नहीं
धन से कभी धर्म नहीं खरीदा जा सकता'धणेण किं धम्मधुराहिगारे' उत्तर. १४/१७ धर्म की धुरा को वहन करने के अधिकार में धन से क्या?
'अत्थो मूलं अणत्थाणं२१- अर्थ तो अनर्थ का मूल है। मृत्यु : एक शाश्वत सत्य
जन्म और मृत्यु का गठबंधन है। मृत्यु एक ऐसा तथ्य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता। भोग में आसक्त मनुष्य के लिए वह एक ऐसा भयावह सत्य है, जिसे मनुष्य सदा भूले रहने की विडम्बना से अपने को जोड़े रखता है। अतएव मृत्यु की अनिवार्यता, अपरिहार्यता का स्मरण कराने के लिए व्यंग्यात्मक शैली मे कवि कहता है -
'जो जाणे न मरिस्सामि सो हु कंखे सुए सिया' उत्तर. १४/२७ जो जानता हो – मैं नहीं मरूंगा, वही कल की इच्छा कर सकता है। भास इस सत्य को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं -
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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