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देवों ने वहां सुगंधित जल, पुष्प और दिव्य धन की वर्षा की। आकाश में दुन्दुभि बजाई और 'अहोदानम्' इस प्रकार का घोष किया। यहां दिव्यपदार्थ परक घ्राणबिम्ब घ्राणेन्द्रिय की गंध - संवेदना की अनुभूति कराने में सक्षम है। दुन्दुभि की दिव्यध्वनि तथा 'अहोदानम्' का दिव्य घोष ध्वनि - बिम्ब का भी निदर्शन कराता है।
उत्तर. ३२/५०
जो मनोज्ञ गंध में तीव्र आसक्ति करता है, वह अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है। जैसे नाग- दमनी आदि औषधियों के गंध में गृद्ध बिल से निकलता हुआ रागातुर सर्प।
गंधे जो गिद्धमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे ओसहिगंधगिद्धे, सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ||
औषधियों की गंध में आसक्त रागातुर सर्प के बिम्ब से कवि मनोज्ञ गंध में अनुराग नहीं करने की प्रेरणा देता है। क्योंकि गंध के परिग्रहण से भी संतुष्टि नहीं होती तथा उसकी अतृप्ति व्यक्ति को दुःखी बनाती है।
'सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते' में रूपबिम्ब, गति - बिम्ब तथा विनाश का भाव - बिम्ब भी लक्षित होता है।
-बिम्ब
रस-1
रसनेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य विषय रस- बिम्ब के विषय हैं। शब्दों के माध्यम से वस्तु की मिठास, कषैलापन आदि की अनुभूति सहृदय पाठक की जिह्वा तक पहुंच जाती है।
'मियापुत्तिज्जं' अध्ययन में मांस आदि के खिलाने से रसनेन्द्रिय को घृणोत्पादक स्वाद की अनुभूति मृगापुत्र के शब्दों में
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तुहं पियाइं मंसाई खंडाई सोल्लगाणि य।
खाविओ मि समंसाई अग्गिवण्णाइं णेगसो || उत्तर. १९/६९
तुझे खंड किया हुआ और शूल में खोंस कर पकाया हुआ मांस प्रिय था - यह याद दिलाकर मेरे शरीर का मांस काट अनि जैसा लाल कर मुझे
खिलाया गया।
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उत्तराध्ययन का शैली - वैज्ञानिक अध्ययन
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