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________________ २. उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे प्रतीक : स्वरूप विश्लेषण 'प्रतीयते येन इति प्रतीकः' - जिसके द्वारा किसी अर्थ-विशेष या वस्तुविशेष की प्रतीति हो वह प्रतीक है। इस अन्वय के अनुसार प्रतीक वह है जो अपने से भिन्न किसी अन्य प्रतीयमान अर्थ का बोध कराता है। लोकमान्य तिलक ने 'गीता रहस्य' में प्रतीक शब्द की व्याख्या करते हुए उसकी संरचना 'प्रति' और 'इक' के योग से मानी। जिसका अभिप्राय है (किसी के) प्रति झुका हुआ। उनके कथनानुसार जब किसी वस्तु का कोई एक भाग पहले गोचर हो और फिर आगे उस वस्तु का (सम्पूर्ण सम्यक्) ज्ञान हो तब उस भाग को प्रतीक कहते हैं। इस दृष्टि से प्रतीक अपने भीतर किसी पदार्थ के संकेत छिपाए रखने वाला तत्त्व है। सांकेतिक शब्दों से वस्तु या गुण को व्यक्त कर देना प्रतीक का कार्य है। कला का वैशिष्ट्य छुपाव है, प्रदर्शन नहीं। इस दृष्टि से प्रतीक अलंकरण या प्रसादन के हेतु हैं। प्रतीक में सम्पूर्ण की अप्रत्यक्ष अभिव्यक्ति होती है।२ किसी जीववस्तु, दृश्य-अदृश्य, प्रस्तुत-अप्रस्तुत वस्तु का प्रतिनिधित्व करने वाली शक्ति प्रतीक है। 'प्रतीक वह जादुई कुंजी है जो सभी द्वारों को खोल सकती है। सभी प्रश्नों का समाधान कर सकती है।'३ प्रतीक को अंग्रेजी में 'सिम्बल' कहा गया है। डॉ. नगेन्द्र ने प्रतीक को रूढ़ उपमान व अचल बिम्ब माना है। उनका कथन है जब उपमान स्वतंत्र न रहकर पदार्थ विशेष के लिए रूढ़ हो जाता है तब वह प्रतीक बन जाता है। डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार - जिस प्रकार मधु का एक बिन्दु सहस्रों पुष्पों की सुगन्धि एवं मकरंद का संश्लिष्ट रूप है उसी प्रकार एक प्रतीक अनेकानेक मानव जगत और वस्तु-जगत के कार्यव्यापारों का संकलन है। साहित्य के इतिहास में मंत्र से लेकर आत्मबोध की उत्तराध्ययन में प्रतीक, बिम्ब, सूक्ति एवं मुहावरे Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002572
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayana Sutra ka Shailivaigyanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitpragyashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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