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लेकर उपस्थित होता है। आज जहां सक्षम नेतृत्व का अभाव है वहां नमि राजर्षि, राजा श्रेणिक आदि का चरित्र जीवंत-आदर्श है। प्रजा के प्रति वफादार सम्पूर्ण मिथिला नमि के पीछे क्रन्दन करती दिखाई देती है। नेतृत्व के लिए नमि, श्रेणिक जैसे नेताओं का अनुकरण करने की अपेक्षा है। __'तं नेव भुज्जो वि समायरामो' (१४/२०)
धर्म को नहीं जानने पर मोहवश हमने पापकर्म का आचरण किया किन्तु 'भृगुपुत्र अब वह (पापकर्म का आचरण) नहीं करेंगे।' असंयम में रत लोगों के लिए इससे और बड़ा प्रेरणास्रोत क्या हो सकता है?
__उत्थान और पतन के चक्रव्यूह से आहत रथनेमि को सही रास्ते पर लाने में राजीमती का नारीत्व जाग उठता है। अरिष्टनेमी का निष्क्रमण महोत्सव, देवताओं का आना इस बात का सूचक है कि ऐसे त्यागी, ब्रह्मर्षिओं के चरित्र के आगे देव भी नमस्कार करते हैं।
प्रतिस्रोत में बढ़ने वाले विरल पुरुष गणधर गार्ग्य आचार संपन्न आचार्य थे। उनकी शिष्यसंपदा भी विस्तृत थी। साधना के क्षेत्र में भी सामुदायिकता विकास को उत्प्रेरित करने वाली है, पर उनके सभी शिष्य उदंड हो गये। वैसी परिस्थिति में शिष्यों का मोह छोड़ तपोमार्ग का स्वीकरण कर गणधर गार्य ने वीरता का परिचय दिया। शिष्यों की भूख साधनामार्ग को भी धूमिल करती दृष्टिगोचर होती है वहां गर्गगोत्रीय स्थविर का उदाहरण साधना के मार्ग में अकेले चलने का भी दृढ़ता के साथ आह्वान करता है।
उत्तराध्ययन का भाषावैज्ञानिक अनुशीलन अनेक तथ्यों के समुद्घाटन के साथ भाषा के क्षेत्र में नवीन है। स्वर-विज्ञान एवं व्यंजन-विज्ञान का अध्ययन स्वर एवं व्यंजनों का अनेक रूपों में परिवर्तन दर्शाता है। मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन के साथ लोप, आगम के विभिन्न रूपों का निदर्शन, स्वरभक्ति, विषमीकरण, महाप्राणीकरण, दन्त्यीकरण, व्यंजनों का विभिन्न रूपों में परिवर्तन आधुनिक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। ग्रंथ में संज्ञा, विशेषण, क्रिया, अव्यय आदि पदों के रूपों का गहन विवेचन भी प्राप्त है। ध्वनिविज्ञान, पदविज्ञान, वाक्यविज्ञान एवं अर्थविज्ञान
आदि की दृष्टि से विमर्श करने पर अनेक तत्त्व सामने आते हैं। अर्थविस्तार, अर्थापकर्ष, अर्थोत्कर्ष आदि तत्त्वों का भी सहज समावेश है। अनेक देशी
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