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६. उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना
'भाषा' शब्द का प्रयोग कई अर्थों में होता है। सामान्य रूप से भाषा उन सभी माध्यमों का बोध कराती है जिससे भावाभिव्यंजन का काम लिया जाता है। इस दृष्टि से पशु-पक्षियों की बोली भी भाषा है, इंगित भी भाषा है, सड़क की लाल-हरी बत्ती भी भाषा है और मनुष्य जो बोलता है वह भी भाषा है। जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते हैं, उस यादृच्छिक, रूढ़, ध्वनि-संकेत की प्रणाली को भाषा कहते
'भाष व्यक्तायां वाचि' धातु से भाषा शब्द निष्पन्न हुआ है। 'भाष्यते व्यक्तवाररूपेण अभिव्यञ्ज्यते इति भाषा' अर्थात् व्यक्त वाणी के रूप में जिसकी अभिव्यक्ति की जाती है उसे 'भाषा' कहते हैं। मुख्य रूप में भाषा शब्द से मानव द्वारा व्यक्त वाणी का ही ग्रहण होता है, क्योंकि व्यक्त भाषा के द्वारा सूक्ष्मातिसूक्ष्म मानवीय भावों को प्रकट किया जा सकता है।
भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषा-विज्ञान कहते हैं। मूलतः भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषा का सर्वांगीण विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। भाषा विज्ञान के चार तत्त्व हैं
१. ध्वनिविज्ञान (Phonology) २. पद-विज्ञान (Morphology)
३. वाक्य-विज्ञान (Syntax) ४. अर्थविज्ञान (Semantics) १. ध्वनि
जो सुनाई देती है और जिससे शब्द-बिम्ब का निर्माण हो उसे ध्वनि कहते हैं। ध्वनि-विज्ञान भाषा की विभिन्न ध्वनियों का ज्ञान कराता है तथा स्पष्ट उच्चारण की शिक्षा देता है। महाभाष्य प्रदीप टीका की उक्ति है'एकः शब्दः सम्यग् ज्ञातः शास्त्रान्वितः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके कामधुर भवति।' एक शब्द का शुद्ध ज्ञान और प्रयोग भी मनुष्य की स्वर्ग-प्राप्ति का
उत्तराध्ययन की भाषिक संरचना
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