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(क)छेको व्यंजनसङ्घस्य सकृत्साम्यमनेकघा।६ (ख)अनेकस्य, अर्थात् व्यंजनस्य सकृदेकवारं सादृश्यं छेकानुप्रासः।७७ कुन्तक ने इसे निम्न भेदों में विभाजित किया है१. संयुक्त या असंयुक्त व्यंजनयुगल की एक बार सान्तर आवृत्ति । २. संयुक्त या असंयुक्त व्यंजनसमूह की एक बार सान्तर आवृत्ति। ३. संयुक्त या असंयुक्त व्यंजनयुगल की एक बार निरन्तर आवृत्ति। ४. संयुक्त या असंयुक्त व्यंजनसमूह की एक बार निरन्तर आवृत्ति। न कोवए आयरियं अप्पाणं पि न कोवए। बुद्धोवघाई न सिया न सिया तोत्तगवेसए॥ उत्तर. १/४०
यहां 'कोवए' असंयुक्त व्यंजन समूह की एक बार अन्तर सहित आवृत्ति तथा 'न सिया' असंयुक्त व्यंजन युगल की एक बार निरन्तर आवृत्ति हुई है।
'मासे मासे गवंदए' उत्तर. ९/४० इसमें असंयुक्त व्यंजनयुगल ‘मासे' का एक बार निरन्तर आवर्तन हुआ है।
'जम्म दुक्खं जरा दुक्खं' उत्तर. १९/१५ इस चरण में ‘दुक्खं' का एक बार व्यवधानरहित प्रयोग हुआ है। न तुमं जाणे अणाहस्स अत्थं पोत्थं व पत्थिया। जहा अणाहो भवई सणाहो वा नराहिवा ॥ उत्तर. २०/१६
यहां 'त्थं' का एक बार सान्तर प्रयोग तथा 'णाहो' का भी एक बार व्यवधान युक्त प्रयोग द्रष्टव्य है। अन्त्यानुप्रास
पूर्वपद या पाद के अन्त में जैसा अनुस्वार-विसर्ग स्वरयुक्त संयुक्त या असंयुक्त व्यंजन आता है उसकी उत्तर पद या पाद के अन्त में आवृत्ति अन्त्यानुप्रास कहलाती है। इससे काव्य में लयात्मकताजन्य श्रुतिमाधुर्य उत्पन्न होता है। यथा
'आलवन्ते लवन्ते वा' उत्तर. १/२१ 'महावीरेणं कासवेणं' उत्तर. २/१ 'सोच्चा नच्चा जिच्चा' उत्तर. २/२
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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