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तृतीय अध्याय
८१-१२७ उत्तराध्ययन मे वक्रोक्ति वक्रोक्ति का स्वरूप काव्यशास्त्रीय आचार्यो की दृष्टि में वक्रोक्ति वक्रोक्ति के भेद-प्रभेद १. वर्णविन्यास-वक्रता, २. पद-पूर्वार्ध-वक्रता-रूढिवैचित्र्यवक्रता, पर्यायवक्रता, उपचार
वक्रता, विशेषण-वक्रता, संवृत्ति-वक्रता, वृत्ति-वक्रता, लिंगवै
चित्र्य-वक्रता- क्रियावैचित्र्य-वक्रता, ३. पद-परार्ध-वक्रता, कालवैचित्र्य-वक्रता, कारक-वक्रता, वचन
वक्रता, उपग्रह-वक्रता,प्रत्यय-वक्रता, उपसर्ग-वक्रता, निपात
वक्रता, ४. वाक्य-वक्रता, ५. प्रकरण-वक्रता, ६. प्रबन्ध-वक्रता
१२८-१८६
चतुर्थ अध्याय
उत्तराध्ययन में रस, छंद एवं अलंकार रस, रसोत्पत्ति, रस-सामग्री, रस-सिद्धान्त का महत्त्व, आगम में रस विषयक अवधारणा, उत्तराध्ययन में रस-सामग्री, छंद का स्वरूप, उत्तराध्ययन में प्रयुक्त छंद, मात्रिक, वर्णिक अलंकार अलंकार : अर्थ एवं स्वरूप, अलंकार का महत्त्व,
उत्तराध्ययन में अलंकार, पंचम अध्याय
उत्तराध्ययन में चरित्र स्थापत्य चरित्र-उपस्थापन का वैशिष्ट्य, उत्तराध्ययन में प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण
१८७-२००
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