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वृक्ष का वासी यक्ष अपने शरीर का गोपन कर मुनि के शरीर में प्रवेश कर इस प्रकार बोला।
यहां हरिकेशबल मुनि की कथा के प्रंसग में यक्ष की कथा, मुनि के शरीर में यक्ष प्रवेश का घटना प्रसंग आदि में आगम में भी नाटकीय रोमांचकता उपस्थित है। यक्ष का रौद्र रूप ब्राह्मणों को तपस्वी की शरण के लिए विवश करता है।
रहनेमिज्जं अध्ययन में विवाह के लिए सज्जित वृष्णिपुङ्गव के द्वारा मार्ग में भय से संत्रस्त तथा मरणासन्न दशा को प्राप्त प्राणियों को देखकर, ये प्राणी मेरे ही विवाह-कार्य में लोगों के भोजन के लिए बाड़ों में अवरुद्ध हैं-इस प्रकार जीववध प्रतिपादक वचन सुन कर वृष्णिपुङ्गव का वापस मुड़ जाना, अपने आप पंचमुष्टि लोच करना तथा स्वयं कृष्ण द्वारा शुभ-आशीर्वाद देना आदि अचानक परिवर्तन में चारूगत विद्यमानता को द्योतित करते हैं -
वासुदेवो य णं भणइ लत्तकेसं जिइंदिय। इच्छियमणोरहे तुरियं पावेसू तं दमीसरा।। उत्तर. २२/२५
वासुदेव ने लुंचितकेश और जितेन्द्रिय अरिष्टनेमि से कहा-दमीश्वर! तुम अपने इच्छित मनोरथ को शीघ्र प्राप्त करो।
इस प्रकार अरिष्टनेमि का भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर प्रयाण, भोग से योग की कहानी प्रकरण-वक्रता का अच्छा उदाहरण है।
इसी अध्ययन में - चीवराई विसारंती जहाजाय त्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि|| उत्तर. २२/३४
चीवरों को सुखाने के लिए फैलाती हुई राजीमती को रथनेमि ने यथाजात रूप में देखा। वह भग्नचित्त हो गया। बाद में राजीमती ने भी उसे देख लिया।
वर्षा से वस्त्रों के भीग जाने से उसे सुखाने के लिए राजीमती का यथाजात होना प्रकरण-वक्रता का उदाहरण है। राजीमती विद्युत् की तरह चमकी पर पूरे अध्ययन पर उसका प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। प्रबन्ध-वक्रता
प्रबन्ध-वक्रता के अंतर्गत महाकाव्य, नाटक आदि के वास्तु-कौशल
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उत्तराध्ययन का शैली-वैज्ञानिक अध्ययन
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