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________________ (२) वाणव्यन्तर देव - भेद-प्रभेद - सामान्य देवों का स्वरूप निरूपण - इन्द्र का आधिपत्यपिशाचेन्द्र काल की परिषदा का वर्णन - व्यन्तर निकाय के इन्द्रों के नाम- इन्द्रों का परिवार - इन्द्रों की देवियाँ के नाम निर्देश - निवास - क्षेत्र - भवनों का स्वरूप-वर्ण और चैत्यवृक्ष - देवों की रुचि - व्यंतरदेव का मनुष्यों के शरीरों में प्रवेश (पृ. १०२ - १११) (३) ज्योतिष्क देव-देवों के भेद-देवों का स्वरूप- ज्योतिष्केन्द्र का वैभव- इन्द्रों की परिषदा - चन्द्र, इन्द्र की अग्रमिहिषिया-भोगोपभोग - सूर्य; ग्रह की अग्रमिहिषिया देव और देवियों की स्थिति - उपपात, निवास-स्थान- विमानों का स्वरूप और प्रमाण - चन्द्र विमान का वहन - देवों की गति; ऋद्धि-ज्योतिष देवों की लोक में संचार विधि- स्थिर ज्योतिष्कचरज्योतिष्क- कालविभाग- विमानों का विस्तृत वर्णन चन्द्रादि की संख्या ग्रहों का नाम निर्देश - नक्षत्र परिचय तालिका-नक्षत्रों उदय व अस्त का क्रम-ताराओं में वृद्धि हानिताराओं का अंतर (पृ. १०३ - १२५) (४) वैमानिक देव-नाम सार्थकता - विमानों के प्रकार-देवों के भेद-देवों के प्रभेद-स - स्वरूप निरूपण देवों के शरीर का वर्णन - निवास स्थान- विमानों का स्वरूप- विमानो की व्यवस्था - लोकान्तिक देव स्थान, नाम, और जाति - विमानो की मोटाई, ऊँचाई विमानों का आकार - विमानों के रंग ओर प्रभा-कल्पोपन्न देवों का वर्णन तालिका विशेष नाम वाले विमान (पृ. १२५-१८६) प्रकरण ४. जैन आगमों में नरक पृ. १९६-२५४ नरक - सामान्य स्वरूप-लोक में नरक का स्थान- नैरयिक का स्वरूप उपपात - शरीर अवगाहना आदि (पृ. १९६ - २०९) - नरकभूमि का परिचय - भेद और प्रमाण - आधार (पृ. २०९-२१२) नारकियों का निवास स्थान- वर्ण- गन्ध-स्पर्श-संख्या- विशालता - अवगाहना प्रस्तरों में नरकावास की रचना - पृथ्वियों का विभागवार अंतर - रत्नादिकांडों का बाहुल्य - रत्नप्रभादि में द्रव्यों की सत्ता - द्वीप - समुद्र आदि की नरक में व्यवस्था (पृ. २१२ - २२७) नारकियों की वेदना-आकार तथा वेदना- उष्ण वेदना-शीत वेदना आदि वेदनाएँउदीरित वेदना - परमाधामी कृत वेदना (पृ. २२८ - २३५) - परस्पर नरकावासों के देव और उनके परिणाम का अनुभव-दुःखों में Jain Education International 2010_03 कार्य नैरयिक के नरक भव का अनुभव- पुद्गल अपवाद - नारकों की मृत्यु (पृ. २३६- २४९) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002570
Book TitleJain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemrekhashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year2005
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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