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पर्याय अपेक्षा से मनुष्य :
मनुष्य-आयु और मनुष्य-गति नामकर्म के उदय से जो जन्म धारण करता है, उन जीवों को मनुष्य कहते हैं । अर्थात् चारगति में जिसने मनुष्य-गति पर्याय को प्राप्त किया है, उस जीव को मनुष्य कहते हैं । क्षेत्र अपेक्षा से मनुष्य :
मानुषोत्तर पर्वत के पहले अर्थात् मानुषोत्तर पर्वत की मर्यादा से व्याप्त ४५ लाख योजन मनुष्य क्षेत्र में ३५ क्षेत्रों और ५६ अंर्तद्वीपों में मनुष्य होते हैं ।
चौदह राज लोक में तिर्छा लोक अर्थात् मनुष्य और तिर्यंच का निवासस्थान १८०० योजन प्रमाण ऊँचा है ।।
पुष्करवरद्वीप में मानुषोत्तर नामक का एक पर्वत है, जो पुष्करवरद्वीप के ठीक मध्य में किले की तरह गोलाकार खड़ा है और मनुष्यलोक को घेरे हुए है । जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और आधा पुष्करवर द्वीप ये ढाई तथा लवण, कालोदधि ये दो समुद्र-यही क्षेत्र ‘मनुष्यलोक' कहलाता है। उक्त क्षेत्र का नाम मनुष्यलोक और उक्त पर्वत का नाम मानुषोत्तर इसलिए पड़ा है कि इसके बाहर मनुष्य का जन्म-मरण नहीं होता । विद्यासम्पन्न मुनि या वैक्रिय लब्धिधारि मनुष्य ही ढाई द्वीप के बाहर जा सकते हैं, किंतु उनका भी जन्म-मरण मानुषोत्तर पर्वत के अंदर ही होता है ।२७
इस अढाई द्वीप में ५ मेरू, १५ कर्मभूमि क्षेत्र, ३० अकर्मभूमि क्षेत्र (जिस में २० क्षेत्र और ५ देवकुरू, ५ उत्तरकूरू) और हिमवत पर्वत से और शिखरी पर्वत से निकले हुए लवणसमुद्र में फैले हुए आठ भूशिर है । एक-एक भूशिर में सात-सात द्वीप है। इस तरह सब मिलकर ५६ द्वीप है । इसके अलावा अनेक छोटे बडे द्वीप, पर्वत, नदिया, द्रह आदि का अढाई द्वीप में समावेश होता है।
तिर्यंच जाति के प्राणियों का निवास अढाई द्वीप में एवं अठाई द्वीप के बाहर द्वीप-समुद्रों में भी होता है । लोक में इन स्थानों में मनुष्य और तिर्यंचों के निवास स्थान हैं ।
नरक और स्वर्ग (स्थान वर्णन ):लोकाकाश के मुख्य तीन विभाग हैं :१. ऊर्ध्वलोक, २. ति लोक, ३. अधोलोक ।
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