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सघन है अतः उसे घनवात कहा गया है। तीसरा वलय उक्त दोनों की अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म या पतला है, इसलिये इसे तनुवात कहते हैं ।
सामान्य देव लोक-स्वरूप लोकाकाश की ऊँचाई १४ रज्जु है । यह अधोलोक में सबसे नीचे लोकांत से साँतवी नारकी के उपर तक एक 'रज्जु' होता है । इस रीति से सातों नारकी के उपर से तलिये तक गिने तो सब मिलकर सात 'रज्जु' होता हैं ।
____ रत्नप्रभा नारकी के उपर के तलिये पहले दो देवलोक के विमान तक आठ रज्जु होता है ।
वहाँ से (चोथा) माहेन्द्र देवलोक का अंत आता है वहाँ तक नौवां 'रज्जु' और वहाँ से (छट्टे) लान्तक देवलोक के अन्त तक दसवाँ 'रज्जु' पूरा होता है।
वहाँ के प्रारंभ से (आठवाँ) सहस्त्रार देवलोक की सीमा पूर्ण होती है वहाँ ग्याहवाँ ‘रज्जु' और वहाँ से बारहवें अच्युत देवलोक की सीमा पूर्ण होती है वहाँ बारहवाँ 'रज्जु' पूर्ण होता है ।
इस तरह अनुक्रम से ग्रैवेयक के अंत में तेरहवाँ और लोक के अंत मे चौदहवाँ रज्जु पूर्ण होता है ।।
इसका वर्णन आवश्यकसूत्र की नियुक्ति और चूर्णि तथा संग्रहणी आदि ग्रंथो में है। भगवतीसूत्र आदि के अभिप्राय से तो धर्मानारकी के नीचे असंख्य योजन होने के बाद 'लोक' का मध्यभाग आता है । उससे उस जगह से सात रज्जु पूर्ण होता है ।
यह समस्त लोक सर्वऔर घनोदधि, घनवात और तनुवात इन तीन वलयों से वेष्टित है । अर्थात् इनके आधार पर अवस्थित है । प्रथम वलय अधिक सघन है, अतः इसे घनोदधि कहते हैं । दूसरा वलय तीसरे वलय की अपेक्षा सघन है, अतः उसे घनवात कहा गया है । तीसरो वलय उक्त दोनों की अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म या पतला है, इसलिये इसे तनुवात कहते हैं ।
अधोलोक भगवती तथा स्थानांगसूत्र की वृत्ति में कहा है कि- इस लोक के अधः परिणाम के कारण से अथवा क्षेत्र की अपेक्षा से कहा है कि बहुलता से वहाँ
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