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दनिया के बीच अनेक धर्मों में या तो नदियाँ या चिनवत जैसे पुलों की कल्पना की है । पापी जीव को वह चिनवत पुल छुरी की धार जैसा बारीक दिखाई देता है, जिसे देख वह कांप उठता है । उसका उल्लंघन करते हुए वह नीचे गिर पड़ता है, जहाँ दोझख-नरक दुःख, उसे भोगना पड़ता है । परंतु अषो मनुष्य अर्थात् पुण्यशाली जीव को वह चिनवत पुल नव नेजा की चौड़ाई वाला दिखाई देता है । सरोश आतर (अग्नि का फिरश्ता) और अपने ही अंतःकरण की राहबरी से वह सवाबी दिवंगत व्यक्ति उस पुल को सरलता से पार कर लेता है और स्वर्ग की शांति प्राप्त कर लेता है । चिनवत पुल पार करके स्वर्ग में जाना उसे 'पुलगुझार' होना कहा जाता है ।
___ यहां जैन मत से यह साम्य है कि जैन मत यह तो स्वीकर करता है कि सत्कार्य करने वाले पुण्यशाली को स्वर्ग तथा बहुत पाप करने वाले को नरक में जाना पड़ता है। किन्तु वहाँ जो चाहरम की बामदाद में जो इन्साफ किया जाता है, वैसी कोई व्यवस्था जैन मत स्वीकार नहीं करता । स्वर्ग और नरक में जाने के कारणों में समानता दृष्टिगत होती है ।
अब स्वर्ग का वर्णन करते हैं कि जिसने वह पुल पसार कर लिया वह कहाँ जाता है ? उसका उल्लेख है कि वह बहेश्त में जाएगा । गाथा में एक ही बहेश्त का बयान है और वह यह है 'गरोनमान' अथवा संगीत का मुकाम । परंतु अवेस्ता में हादोख्त नस्क के अनुसार बहेश्त के चार तबक्के देने में आते हैं । पहेला तबक्का वह हुमत (अच्छे विचार) का बहेश्त । २ हुरत (अच्छे वचन) का ब्हेश्त ३. हुवरश्त (अच्छे कार्य) का बहेश्त और अंतिम श्रेष्ठ मीनोई जगह वह 'गरोनमान', जहाँ अनघ्र २ ओच अथवा खुदा का अपार तेज झलक रहा है । सवाबी (पुण्यशाली) आत्माओं को स्वर्ग में बहेमन अमेशास्पंद (विशुद्ध मनरूपी फिरश्ते) हर्षभरा आवकार (सन्मान) देने को हाजिर रहता है । पहेलवी शास्त्रों में तो और भी अधिक कहा गया है कि पहले बहेश्त को सितम्पाये का, दूसरे कोम हापाय का और तीसरे को खुरशीद पाये का बहेश्त माना गया है । मतलब कि पहला बहेश्त सितारों में, दूसरा चंद्रमा में और तीसरा सूर्य के अपार तेज में कल्पित किया गया है । जैन मन्तव्यानुसार सूर्य, चंद्र और तारे देवगति में माने गये हैं । यहाँ जो देवगति के चार प्रकार देवों का उल्लेख हैं, उसी प्रकार इनमें भी चार तबक्के माने गये हैं ।
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