________________
२६४
दूसरे परिखण्ड में दक्षिण की और मालाधर रहते हैं । तीसरे परिखंड में पश्चिम की और सदामद रहते हैं और चौथे परिखंड में चातुर्माहाराजिक देव रहते हैं । इसी प्रकार शेष सात पर्वतों पर भी उक्त देवों का निवास है ।२१
जम्बूद्वीप में उत्तर की ओर बने कीयादि और उनके आगे हिमवान पर्वत अवस्थित है । हिमवान पर्वत से आगे उत्तर में पाँच सौ योजन विस्तृत अनवतप्त नाम का अगाध सरोवर है । इससे गंगा, सिंधु, वक्षु और सीता नाम की चार नदिया निकली हैं । इस सरोवर के समीप जम्बू-वृक्ष है, जिससे इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा है । अनवप्त-सरोवर के आगे गन्धमादक नाम का पर्वत है ।२२
नरक लोक जम्बूद्वीप के नीचे बीस हजार योजन विस्तृत अवीचि नाम का नरक है। उसके ऊपर क्रमश: प्रतापन, तपन, महारौरव, रौरव, संघात, कालसूत्र और संजीव नाम के सात नरक और है ।२३ इन नरकों के चारों पार्श्व-भागों में कुकूल, कुणप, क्षुर्मार्गादिक, (असिपत्रवन, श्यामसबलस्वस्थान अयः शाल्मलीवन) और खारोदक वाली वैतरणी नदी ये चार उत्सद हैं। अर्बुद, निरर्बुद, अटट, उहहब, हुहूब, उत्पल, पद्म और महापद्म नाम वाले ये आठ शीत-नरक और हैं, जो जम्बूद्वीप के अधो-भाग में महानरकों के धरातल में अवस्थित है ।२४
ज्योतिर्लोक मेरू-पर्वत के अर्द्ध -भाग अर्थात् भूमि से चालीस हजार योजन ऊपर चन्द्र और सूर्य परिभ्रमण करते हैं । चन्द्र-मण्डल का प्रमाण पचास योजन और सूर्य-मण्डल का प्रमाण इक्यावन योजन है। जिस समय जम्बू-द्वीप में मध्याह्न होता है उस समय उत्तरकुरू में अर्धरात्रि, पूर्वविदेह में अस्तगमन और अवरगोदानीय में सूर्योदय होता है । भाद्रमास के शुक्लपक्ष की नवमी से रात्रि की वृद्धि और फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की नवमी से उसके हानि का आरम्भ होता है। रात्रि की वृद्धि, दिन की हानि और रात्रि की हानि, दिन की वृद्धि होती है। सूर्य के दक्षिणायन में रात्रि की वृद्धि और उत्तरायण में दिन की वृद्धि होती है ।२६ ।
. स्वर्गलोक मेरू के शिखर पर त्रयस्त्रिंश (स्वर्ग) लोक है । इसका विस्तार अस्सी हजार योजन है । यहाँ पर त्रायस्जिग देव रहते हैं । इसका चारों विदिशाओं में
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org