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४. द्रव्यानुयोग
१. चरणकरणानुयोग :
इसमें आत्मा के मूलगुण - सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र, संयम, आचार, व्रत, ब्रह्मचर्य, कषाय- निग्रह, तप, वैयावृत्य आदि तथा उत्तरगुण-पिण्डविशुद्धि, समिति, गुप्ति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रिय-निग्रह, अभिग्रह, प्रतिलेखन आदि का वर्णन है । आगम :- आचारांग प्रश्र्व्याकरण, दशवैकालिक, निशीथ, व्यवहार बृहत्कल्प, तथा दशाश्रुतस्कन्ध-ये चार छेदसूत्र तथा आवश्यक का इस अनुयोग में समावेश होता हैं ।
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२. धर्मकथानुयोग :
इसमें दया, अनुकम्पा, दान, शील, क्षान्ति, ऋजुता, मृदुता आदि धर्म के अंगो का विश्लेषण है, जिसके माध्यम मुख्य रूप से छोटे बड़े कथानक हैं । आगम :- ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुतरौपपातिकदशा एवं विपाक, औपपातिक, राजप्रीय, निरयावली, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका एवं वृष्णिदशा, उत्तराध्ययन आदि ।
३. गणितानुयोग :
इसमें मुख्यतया गणित - सम्बद्ध, ज्योतीष सम्बद्ध अर्थात विश्वरचना संबंधी वर्णन हैं ।
आगम :- सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति । जैन परंपरानुसार चारों गति के जीव जहाँ रहते हैं ? उसको लोक कहते हैं । लोक कैसा है, उसका प्रमाण क्या है ? उसका आकार कैसा है ? सभी का विवेचन विस्तृत रूप से उल्लेख इस अनुयोग का विषय है । इस महानिबंध में हमें लोक के स्वर्गनरक विभाग का विशेष अध्ययन करना है, इसलिए लोक संबंधी जैन धर्म की मान्यता हमें देखती होगी, वह प्रकरण २ में देखेगें ।
४. द्रव्यानुयोग :
इसमें षट् द्रव्य जीव, आकाशास्तिकाय, काल एवं आश्रव, का सूक्ष्म, गहन विवेचन है ।
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अजीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, संवर, निर्जरा, पुण्य, पाप, बंध, मोक्ष आदि
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