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में नहीं । विष्णुपुराण में भी इसका उल्लेख इस प्रकार से मिलता है
अवसर्पिणी न तेषां वै नचोत्सर्पिणी द्विज ।
नत्वेषाऽस्ति युगावस्था तेषु स्थानेषु सप्तसु ॥ अर्थात्-हे द्विज ! जम्बूद्वीपस्थ अन्य सात क्षेत्रों में भारतवर्ष के समान न काल की अवसर्पिणी अवस्था है और न उत्सपिणी अवस्था ही ।
वर्षधर पर्वतों पर सरोवर जैन मान्यता के समान मार्कण्डेय पुराण में भी वर्षधर पर्वतों के ऊपर सरोवरों का तथा उनमें कमलों का उल्लेख इस प्रकार हैं
एतेषां पर्वतानां तु द्रोण्योऽतीव मनोहराः । ___ वनैरमलपानीयैः सरोभिरूपशोभिताः ॥
_ (अ० ५५ श्लोक १४-१५) उक्त सरोवरों में कमलों का उल्लेख इस प्रकार हैतदेतत् पार्थिवं पद्म चतुष्पत्रं मयोदितम् ।।
_ (अ० ५५ श्लोक २०) यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैन मान्यता के समान ही पुराणकारने भी पद्म को पार्थिव माना है।
बौद्धमतानुसार लोक वर्णन लोक-रचना :
आ० वसुबन्धु ने अपने अभिधर्म-कोश में लोक रचना इस प्रकार बतलाई
लोक के अधोभाग में सोलह लाख योजन ऊँचा, अपरिमित वायुमण्डल है । उसके ऊपर ११ लाख बीस हजार योजन ऊँचा जल-मण्डल है । उसमें ३ लाख बीस हजार योजन कंचनमय भूमण्डल है ।१४ जल-मण्डल और कंचनमण्डल का विस्तार १२ लाख ३ हजार चार सौ पचास योजन तथा परिघि छत्तीस लाख दस हजार तीन सौ पचास योजन प्रमाण है ।५
कांचनमय भूमण्डल के मध्य में मेरू-पर्वत है । यह अस्सी हजार योजन नीचे जल में डूबा हुआ है तथा इतनी है ऊपर निकला हुआ है ।१६ इससे आगे
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