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नष्ट कर देता है, उसी प्रकार इन सूत्रों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का रहस्य अल्प सामर्थ्यवाले व्यक्ति के नाश का कारण होता है । छेदसूत्र संक्षिप्त शैली में लिखे गये हैं । इनकी संख्या छह हैं- (१) निसीह; (२) महानिसीह; (३) ववहार; २२ (४) दसासुयक्खंध; (५) कल्प; (६) पंचकल्प; ।
मूलसूत्र बारह उपांगो की भाँति मूलसूत्रों का उल्लेख भी प्राचीन आगम ग्रंथो में देखने में नहीं आता ।२२ इन ग्रंथो में साधु-जीवन के मूलभूत नियमों का उपदेश है, इसलिये इन्हें मूलसूत्र कहा है । कुछ लोग उत्तराध्ययन, आवश्यक और दशवैकालिक सूत्रों को ही मूलसूत्र मानते हैं, पिंडनियुक्ति और ओघनियुक्ति को मूलसूत्रों में नहीं गिनते । इनके अनुसार पिंडनियुक्ति दशवैकालिकनियुक्ति का और
ओघनियुक्ति आवश्यकनियुक्ति का ही एक अंश है। कुछ विद्वान् पिंडनियुक्ति को मूलसूत्रों में सम्मिलित कर मूलसूत्रों की संख्या चार मानतें हैं। ओर कुछ पिंडनियुक्ति के साथ ओघनियुक्ति को भी शामिल कर लेते है । कहीं पक्खियसुत्त का नाम भी लिया जाता है । आगमों में मूलसूत्रों का स्थान कई दृष्टियों से बहुत महत्व का है। इनमें प्राप्त उत्तराध्ययन और दशवैकालिक जैसे सूत्र जैन आगमों के प्राचीनतम सूत्रों में गिने जाते हैं, और इनकी तुलना सुत्तनिपात, धम्मपद आदि प्राचीन बौद्धसूत्रों से की जाति हैं । मूलसूत्र निम्नलिखित चार है :
१) उत्तराध्ययन (२) आवश्यक ३) दशवैकालिक और ४) पिंडनिज्जुति अथवा ओघनियुक्ति
चूलिकासूत्र-नन्दी और अनुयोगद्वार नन्दी की गणना अनुयोगद्वार के साथ की जाती है। ये दोनों आगम अन्य आगमों की अपेक्षा अर्वाचीन मान्य किये गये हैं । नन्दी के कर्ता दूष्यगणि के शिष्य देववाचक हैं। कुछ लोग देववाचक और देवर्धिगणि क्षमाश्रमण को एक ही मानते हैं । लेकिन यह ठीक नहीं हैं, दोनों की गच्छ परम्परायें भिन्न-भिन्न हैं । जिनदासगणि महत्तर ने इस सूत्र पर चूर्णी तथा हरिभद्र और मलयगिरि ने टीकायें लिखी हैं ।२३
आगमों की सामान्य व्याख्या आप्त वचन जो हैं, वही आगम है । जैन संमत आप्त कौन हैं ? जिसने रागद्वेष पर विजय पा लिया हैं ऐसे तीर्थंकर, जिन, सर्वज्ञ भगवान आप्त हैं ।
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