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नारक में शीतादि वेदना रत्नप्रभापृथ्वी के नारक शीतवेदना नहीं वेदते हैं, उष्णवेदना वेदते हैं, शीतोष्णवेदना नही वेदते हैं । वे नारक शीतयोनि वाले हैं । योनिस्थान के अतिरिक्त समस्त भूमि खैर के अंगारों से भी अधिक प्रतप्त है, अतएव वे नारक उष्णवेदना वेदते हैं, शीतवेदना नहीं। शीतोष्णस्वभाव वाली सम्मिलित वेदना का नरकों में मूल से ही अभाव है।
शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में भी उष्णवेदना ही है । पंकप्रभा में शीतवेदना भी और उष्णवेदना भी है । नरकावासों के भेद से कतिपय नारक शीतवेदना वेदते हैं और कतिपय नारक उष्णवेदना । उष्णवेदना वाले नारक जीव अधिक हैं और शीतवेदना वाले कम हैं ।
धूमप्रभा में भी दोनों प्रकार की वेदनाएँ हैं परंतु वहाँ शीतवेदना वाले अधिक हैं और उष्णवेदना वाले कम हैं ।
छठी नरक में शीत वेदना है । क्योंकि वहाँ के नारक उष्णयोनिक हैं । योनिस्थानों को छोड़कर सारा क्षेत्र अत्यन्त बर्फ की तरह ठंठा है, अतएव उन्हें शीतवेदना भोगनी पडती है । सातवीं पृथ्वी में अतिप्रबल शीतवेदना है ।
४. वेदना के प्रकार :अधोलोक में अनेक प्रकार के दुःख होते हैं । मुख्यतः नैरयिक को तीन प्रकार की वेदना होती है ।२- १. क्षेत्रकृत, २. परस्पर उदीरित, ३. परमाधामी कृत वेदना.
नैरेयिक को क्षेत्रकृत १० वेदनाएँ :-८३ (१) उष्ण वेदना :
जैसे ग्रीष्मकाल से, जेठ महिना हो, आकाश बादल रहित हो, मध्याहन का समय हुआ हो, हवा बिलकुल न हो, सूर्य बराबर आकाश में मध्य भाग में जाज्वल्यमान होकर तपा हुआ हो-ऐसे समय में पित्तप्रकोपवाले और छत्री रहित मनुष्य को सूर्य के अग्नि जैसे ताप से जो अतिशय वेदना होती है उससे अनंतगुणी वेदना नरक के जीवों को होती हैं।
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