________________
२१३
जैसे कोई लोहे की कोठी के आकार के हैं, कोई मदिरा बनाने हेतु पिष्ट आदि पकाने के बर्तन के आकार के हैं, कोई कंदू हलवाई के पाकपात्र जैसे हैं, कोई लोही-तवा के आकार के हैं, कोई कडाही के आकार के हैं, कोई भाली ओदान पकाने के बर्तन जैसे हैं, कोई पिठरक (जिसमें बहुत से मनुष्यों के लिए भोजन पकाया जाता है वह बर्तन) के आकार के हैं, कोई कृत्रिम (जीवाविशेष) के आकार के हैं, कोई कीर्णपुटक जैसे हैं, कोई तापस के आश्रम जैसे कोई मुरज (वाद्यविशेष) जैसे, कोई मृदंग के आकार के, कोई नन्दिमृदंग (बारह प्रकार के वाद्यों में से एक) के आकार के, कोई आलिंगक (मिट्टी का मृदंग) के जैसे, कोई सुघोषा घंटे के समान, कोई दर्दर (वाद्यविशेष) के समान, कोई पणव (ढोल विशेष) जैसे, कोई पटह (ढोल) जैसे, भेरी जैसे, झल्लरी जैसे, कोई कुस्तुम्बक (वाद्य-विशेष) जैसे और कोई नाडीघटिका जैसे हैं ।
इसी प्रकार के छठी नरक पृथ्वी तक नरकावास बने हैं । सातवीं पृथ्वी में नरकावासों का संस्थान दो प्रकार का हैं-वृत्त(गोल) और त्रिकोण आकार । इस में आवलिकाप्रविष्ट नरकावास ही है । ये पांच हैं । चारों दिशाओं में चार हैं,
और एक मध्य में है । मध्य का अप्रतिष्ठान नरकावास गोल है और शेष ४ नरकावास त्रिकोन हैं।
रत्नप्रभादि के नरकावासों का बाहल्य तीन हजार योजन का है । एक हजार योजन का नीचे का भाग घन है, एक हजार भोजन का मध्यभाग झुषिर है और ऊपर का एक हजार योजन का भाग संकुचित है५३ । इसी तरह सातों पृथ्वियों के नरकावासों का बाहल्य है । ३. नरकावास का वर्ण, गंध और स्पर्श
वर्ण :- ये नरकावास काले हैं, अत्यन्त काली कान्तिवाले हैं, नारक जीवों के रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं, भयानक हैं, नारक जीवों को अत्यन्त त्रास करने वाले हैं और परम काले हैं-इनसे बढ़कर और अधिक कालिमा कहीं नहीं है । इसी प्रकार सातों पृथ्वियों के नारकावास कहे गये है। .
गंध :- नरकावास में जैसे सर्प का मृत कलेवर हो, गाय का मृतकलेवर से कुत्ते का मृत कलेवर की दुर्गंध हो, बिल्ली का मृत कलेवर की गंध हो । इसी प्रकार मनुष्य, भैंस, चूहें, घोडे, हाथी, सिंह, व्याघ्र, भेड़िये और चीते के मृतकलेवर जैसी दुर्गंध हो जो धीरे-धीरे सूज-फूलकर सड़ गया हो और जिसमें
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org