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नहीं है ।
रत्नप्रभा पृथ्वी का दूसरा काण्ड पंकबहुल है । इस काण्ड में कीचड़ की अधिकता है । इसका कोई भी विभाग न होने से एक प्रकार का ही है । इस काण्ड की ८४ हजार योजन मोटाई है ।
रत्नप्रभापृथ्वी का तीसरा अप्बहुल काण्ड है । इसमें जल की प्रचुरता है और इसका भी कोई विभाग नहीं है, यह काण्ड ८० हजार योजन मोटाई वाला है । इस तरह रत्नप्रभा के तीनों काण्डों को मिलाने से रत्नप्रभा की कुल मोटाई (१६+८४+८०) एक लाख अस्सी हजार योजन हो जाती है ।
दूसरी नरकपृथ्वी शर्कराप्रभा से अधः सप्तम पृथ्वी तक नरकभूमियों का कोई विभाग नहीं है । ४७ सब एक ही आकारवाली हैं ।
२. नरकपृथ्वियों का आधार
नरक की सातों पृथ्वियाँ घनोदधि, घनवात, तनुवात और शुद्ध आकाश के आधार पर स्थित हैं ।
घनोदधि :- जमे हुए जल को कहते हैं ।
घनवात :- पिण्डीभूत वायु को कहते हैं ।
तनुवात :- हल्की वायु को कहते हैं ।
शुद्ध आकाश :- यह किसी पर अवलम्बित न होकर स्वयं प्रतिष्ठित हैं । अर्थात् आकाश के आधार पर तनुवात, तनुवात पर घनवात और घनवात पर घनोदधि और घनोदधि पर ये रत्नाप्रभादि पृथ्वियां स्थित हैं ।"
जिस प्रकार कोई व्यक्ति हवा से भरे हुए डिब्बे या मशक को कमर पर बांधकर अथाह जल में प्रवेश करे तो वह जल के ऊपरी सतह पर ही रहेगा, नीचे नहीं डूबेगा । वह जल के आधार पर स्थित रहेगा । उसी तरह घनाम्बु पर ये पृथ्वियाँ टिकी रहती हैं" ।
ये सातों नरकभूमियां एक के नीचे एक हैं, परन्तु बिल्कुल सटी हुई नहीं हैं । इनके बीच में बहुत अन्तर है । इस अन्तर में घनोदधि, घनवात, तनुवात और शुद्ध आकाश नीचे-नीचे है । प्रथम नरकभूमि के नीचे घनोदधि है, उसके नीचे घनवात है, उसके नीचे तनुवात है और इसके नीचे आकाश है । आकाश
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