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अड़तालीस कोनों, ४८ धारों और ४८ आयामों-पहलुओं वाला है । शेष वर्णन माहेन्द्रध्वज जैसा जानना ।
माणवक चैत्यस्तम्भ के ऊपरि भाग में बारह योजन और नीचे बारह योजन छोड़कर मध्य के शेष छत्तीस योजन प्रमाण भाग-स्थान में अनेक स्वर्ण और रजतमय फलक-पाटिये लगे हुए हैं । उन स्वर्ण-रजतमय फलकों पर अनेक वज्रमय नागदंत-खूटिया हैं । इसके ऊपर बहुत से रजतमय सीकें पटक रहे हैं। इसके अंदर वज्रमय गोल गोल समुद्गक (डिब्बे) रखे हैं ।
इन में बहुत-सी जिन-अस्थियाँ सुरक्षित रखी हुई है । ये अस्थियाँ सूर्याभदेव एवं अन्य देव-देवियों के लिए अर्चनीय (वंदनीय, समाननीय, सत्करणीय तथा कल्याण, मंगल देव एवं चैत्य रूप में) पर्युपासनीय हैं ।
इस माणवक चैत्य के ऊपर आठ आठ मंगल, ध्वजायें और छत्रातिछत्र सुशोभित है ।१९३
देव-शय्या मणिपीठिका के ऊपर एक श्रेष्ठ देव-शय्या रखी हुई हैं । इसके प्रतिपाद अनेक प्रकार की मणियों से बने हैं । स्वर्ण के पाद-पाये हैं । पादशीर्षक (पायों के ऊपरी भाग)अनेक प्रकार की मणियों के हैं । गाते (ईषायें-पाटियों) सोने की हैं । सांधे वज्ररत्नों से भरी हुई है । बाण (निवार) विविध रत्नमयी है । तूली (बिछौना-गादला) रजतमय है । ओसीसा लोहिताक्षरत्न का है । गंडोपधनिका (तकिया) सोने की है।
इस शय्या के ऊपर शरीर प्रमाण उपधान-गद्दा बिछा हैं । उसके शिरोभाग और चरणभाग (सिरहाने और पांयते) दोनों ओर तकिये लगे हैं । वह दोनों और से ऊँची और मध्य में नत-झुकी हुई, गंभीर गहरी है। जैसे गंगा किनारे की बालू में पांव रखने से पांव घंस जाता है, उसी प्रकार बैठते ही नीचे की ओर घुस जाते हैं । उस पर रजस्त्राण पड़ा रहता है- मसहरी लगी हुई है । कसीदा वाला क्षौमदुकूल (रूई का बना चद्दर) बिछा है । उसका स्पर्श आजिनक (मृगछाला, चर्म निर्मित वस्त्र), रूई, बूर नामक वनस्पति, मक्खन और आक की रूई के समान सुकोमल है । रक्तांशुक-लाल तूस से ढका रहता है । यावत् असाधारण सुन्दर है ।१९४
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