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आकाश में शोभित होते हैं । ११७
इसी प्रकार सभी द्वीप समुद्रों में ज्योतिष्क देवों की संख्या हैं ।
१९. ग्रहों का नाम निर्देश
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ग्रहों के ८८ नाम है
१) बुध; २) शुक्र; ३) बृहस्पति; ४) मंगल; ५) शनि; ६ ) काल; ७) लोहित; ८) कनक; ९) नील; १० ) विकाल ११) केश; १२) कवयव; १३) कनक - संस्थान; १४) दुन्दुभक (दुन्दुभि); १५ ) रक्तनिभ; १६) नीलाभास; १७) अशोक संस्थान; १८) कंस; (१९) रूपनिभ (रूपनिर्भास); २०) कंसक वर्ण (कंस वर्ण); २१) शंखपरिणाम; २२) तिलपुच्छ; २३) शंखवर्ण; २४) उदकवर्ण (उदय); २५) पंचवर्ण; २६) उत्पात २७) धूमकेतुः २८) तिल; २९) नभ; ३०) क्षारराशि; ३१) विजिष्णु (विजयिष्णु); ३२) सदृश; ३३) संधि; (शन्ति); ३४) कलेवर; ३५ ) अभिन्न (अभिन्न सन्धि ); ३६) ग्रन्थि; ३७) मानवक (मान); ३८) कालक; ३९) कालकेतुः ४०) नलिय ४१) अनय ४२) विद्युज्जिह; ४३) सिंह; ४४ ) अलक; ४५) निर्दुःख; ४६) काल; ४७) महाकाल; ४८) रूद्र ४९) महारूद्र; ५०) सन्तान; ५१) विपुल; ५२ ) संभव; ५३) स्वार्थी; ५४) क्षेम (क्षेमकर); ५५) चन्द्र; ५६) निर्मन्त्र; ५७ ) ज्योतिष्माण; ५८) दिशमस्थितदिशा; ५९) विरत; ६०) वीतशोक; ६१) निश्चल; ६२) निश्चल ६३) प्रलम्ब; ६४ ) भासुर; ६४) स्वयंप्रभ; ६५) विजय; ६६) वैजयन्त; ६७) सीमंकर; ६८ ) अपराजित; ६९ ) जयन्त; ७०) विमल; ७१) अभयंकर ७२) विकस; ७३) काष्ठी (करिकाष्ठ); ७४) विकट; ७५) कज्जली; ७६) अग्निज्वाल; ७७) अशोक ७८) केतुः ७९) क्षीरस्स; ८० ) अघ; ८१ ) श्रवण, ८२ ) जलकेतुः ८३) केतु (राहु); ८४) अंतरद; ८५ ) एकसंस्थान; ८६ ) अश्व; ८७) भावग्रह; ८८ ) महाग्रह इस प्रकार ये ८८ ग्रहों के नाम है । इनको द्विगुणित करने पर ये १७६ होते हैं ।
सब ग्रहों की १) विजया २) वैजयन्ती, ३) जयन्ती तथा ४) अपराजिता नामक चार - चार अग्रमहिषियाँ होती हैं । इस प्रकार १७६ ग्रहों की इन्हीं नामों की अग्रमहिषियाँ होती है । ११९
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