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________________ जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश माटे सर्वत्र भंडारोमा हस्तप्रतो मेळववा तपास करी-करावी हती; परंतु कमनसीबे क्यांयथी य एवी प्रत मळी शकी नहीं. एटले पाटणनी प्रतना आधारे ज कार्य प्रारंभापुं. पण ते अधूरी हती, एनो अंत्य भाग अपूर्ण हतो. एटलामां अमदावाद पगथियाना-संवेगी उपाश्रयमांथी एक हस्तप्रत सटीक मळी, जे संपूर्ण हती. आ बने प्रतना आधारे पंडित बाबुलाल सवचंदे खूब ज जहमत ऊठावी सुंदर प्रेसकोपी तैयार करी आपी. त्यार बाद में संपादन कार्य आगळ वधार्यु. संपादन कार्य चालु हतुं ए वखते विचार आव्यो के, आ खूब ज महत्त्वनो संदर्भग्रंथ होई आना संपादनमा तुलनात्मक टीप्पणीओ आदि मूकाय तो अभ्यासुजनोने वधु लाभदायी बने. ए कार्य माटे विचार करतां परमगुरुदेव तपागच्छाधिपति पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना साम्राज्यवर्ती अने प्रवर्तिनी साध्वीजी श्रीरोहिताश्रीजी म. सा. ना शिष्यरत्ना विदुषी साध्वीजी श्रीचंदनबाळाश्रीजी महाराज तरफ नजर गई. तेमनी स्वाध्यायरुचि, खंत, धगश अने पदार्थबोध आदिनी सज्जता जोई आ कार्य तेओ सारी रीते आगळ वधारी पूर्ण करी शकशे एवो विश्वास जाग्यो, तेथी तेमने वात करी अने आ वातनो तेमणे तरत ज सहर्ष स्वीकार करी टुंका समयगाळामां ज अथाक परिश्रम करी, आ कार्य संपन्न करी आप्यु. मारा मार्गदर्शनने झीली, विविध धर्मग्रंथोना जरूरी संदर्भो-साक्षीओ-उद्धरण श्लोकोना मूळ ग्रंथाधारो अने तुलनात्मक टीप्पणीओ आदिथी तेमणे आ ग्रंथनी उपादेयताने केई गणी वधारी दीधी छे. तेमनो आ ज्ञान-परिश्रम तेमना पोताना आत्मविकास साथोसाथ केई भव्यात्माओना अंधकारभर्या साधनाजीवनमां अध्यात्मनो उजास रेलावशे ए नि:संदेह छे. तेमणे पाठशुद्धि माटे पण अनुमोदनीय चीवट राखी छे. आ कार्य चालु हतुं ते दरम्यान पण अनेक स्थळे अन्य हस्तप्रतो मेळववाना प्रयास चालु ज हता, छतां क्यांयथी सटीक प्रत न मळतां उपलब्ध साधनोना आधारे आ संपादन करायं छे. तेथी कोइ स्थानमां अशुद्धि रही होय तो प्रबुद्ध वाचकवर्ग एनुं यथायोग्य परिमार्जन करीने वाचन करे. ___ आ ग्रंथरत्नमां प्राकृत गाथाओ, प्राकृत कथानको पण होई प्राकृतभाषाना निष्णात पं. श्री अमृतलाल भोजकनो सहयोग लेवानो विचार को अने एमणे खूब ज आत्मीयताथी आ कार्य स्वीकार्यु; परंतु तेमणे शरूआत करी न करी एटलामां ज तेमनो देहविलय थई जतां ए तमाम कार्य पण विदुषी साध्वीजी श्रीचंदनबाळाश्रीजी महाराजे पूर्ण कर्यु छे. __ आ ग्रंथना प्रुफो तपासवामां विदुषी साध्वीजी श्रीचंदनबालाश्रीजी महाराज उपरांत अन्य पण केटलाक महात्मा-पुण्यात्मा सहयोगी बन्या छे. तेमां बहुसंख्य श्रमणीवृंद योगक्षेमकारिका साध्वीजी श्रीचंद्राननाश्रीजी महाराजनां शिष्या विदुषी साध्वीजी श्रीप्रशमिताश्रीजी महाराजनां शिष्या-प्रशिष्या साध्वीजी श्रीराजप्रज्ञाश्रीजी महाराज तथा साध्वीजी श्रीविज्ञानप्रज्ञाश्रीजी महाराज पण खूब ज सहयोगी बन्यां छे. एमांय नाना साध्वीजीनो मात्र बे वर्षनो टुंको दीक्षापर्याय होवा छतां गुरुकृपाथी संस्कृत व्याकरणादिनो सुंदर अभ्यास-बोध केळवी तेमणे आ ग्रंथनी प्रुफशुद्धि वगेरे करवा द्वारा सुंदर श्रुतभक्ति करी Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002567
Book TitleHitopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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